________________ सूत्रकृतांगसूत्र परिचय 0 प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का द्वितीय अंग है / इसका प्रचलित नाम 'सूत्रकृतांग' है। 0 नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहुने इसके तीन एकार्थक गुणनिष्पन्न नामों का निरूपण किया है।" (1) सूतगडं (सूत्रकृत), (2) सुत्तकडं (सूत्रकृत) और सुयगडं (सूचाकृत) 0 तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर द्वारा अर्थरूप में सूत (उत्पन्न) होने से, तथा गणधरों द्वारा ग्रथित-कृत (सूत्ररूप में रचित) होने से इसका नाम 'सूत्रकृत' है / सूत्र का अनुसरण करते हुए इस में तत्त्वबोध (उपदेश) किया गया है, एतदर्थ इसका नाम सूत्रकृत् है। 1] इसमें स्व-पर समयों (सिद्धान्तों) को सूचित किया गया है, इसलिए इसका नाम 'सूचाकृत' भी है।' 0 समवायांग, नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्र में इसका 'सूयगडो (सूत्रकृत) नाम उपलब्ध होता है। 9 नन्दीसूत्र वृत्ति और चूर्णि में दो अर्थ दिये गए हैं-~जीवादि पदार्थ (सूत्र द्वारा) सूचित उपलब्ध हैं, इसलिए, तथा जीवादि पदार्थों का अनुसन्धान होता है, इसलिए इसका नाम 'सूत्रकृत' ही अधिक संगत है। अचेलकपरम्परा में भी सूत्रकृतांग के प्राकृत में तीन नाम मिलते हैं-सुद्दयड, सूदयड और सूदयद / इन तीनों का संस्कृत रूपान्तर वहाँ 'सूत्रकृत' ही माना है / जैसे पुरुष के 12 अंग होते हैं, वैसे ही श्रु तरूप परमपुरुष के आचार आदि 12 अंग क्रमशः होते हैं, इसलिए आचार, सूत्रकृत आदि 12 आगमग्रन्थों के आगे 'अंग' शब्द लगाया जाता है। 1 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा-२ 2 सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक 2 3 (क) समवायांग प्रकीर्णक समवाय 88 (ख) नन्दी सूत्र ६०(ग) अनुयोगद्वार सूत्र 50 4 (क) नन्दी हारिभद्रीय वृत्ति पृ० 77, (ख) नन्दीचूणि पृ०६३ / 5 प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी में "तेवीसाए सुद्दयडज्झाणेसु। (ख) जं तमंमपविटें ....""सूदयडं'..... "सूदयदे छत्तीसपद सहस्साणि ।'-जयधवला पृ० 23, तथा पृ० 85 6 (क) नन्दी सूत्र चूर्णि पृ० 57, हारी० वृत्ति पृ० 66, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org