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________________ 412 सूत्रकृतांग-बारहवाँ अध्ययन - समवसरण 546. अज्ञानी जीव (बाल) सावध (पापयुक्त) कर्म करके अपने कर्मों का क्षय नहीं कर सकते। अकर्म के द्वारा (आश्रवों-कर्म के आगमन को रोक कर, अन्ततः शैलेशी अवस्था में) धीर (महासत्व) साधक कर्म का क्षय करते हैं। मेधावी साधक लोभमय (परिग्रह) कार्यों से अतीत (दूर) होते हैं, वे सन्तोषी होकर पाप कर्म नहीं करते। 550. वे वीतराग पुरुष प्राणिलोक (पंचास्तिकायात्मक या प्राणिसमूह रूप लोक) के भूत, वर्तमान एवं भविष्य (के सुख-दुःखादि वृत्तान्तों) को यथार्थ रूप में जानते हैं। वे दूसरे जीवों के नेता हैं, परन्तु उनका कोई नेता नहीं है। वे ज्ञानी पुरुष (स्वयं बुद्ध, तीर्थकर, गणधर आदि) संसार (जन्म-मरण) का अन्त कर देते हैं। 551. वे (प्रत्यक्षज्ञानी या परोक्षज्ञानी तत्त्वज्ञ पुरुष) प्राणियों के घात की आशंका (डर) से पापकर्म से घृणा (अरुचि) करते हुए स्वयं हिंसादि पापकर्म नहीं करते, न ही दूसरों से पाप (हिंसादि) कर्म कराते हैं / वे धीर पुरुष सदैव संयत (पापकर्म से निवृत्त) रहते हुए संयमानुष्ठान की ओर झुके रहते हैं। परन्तु कई अन्यदर्शनी ज्ञान (विज्ञप्ति) मात्र से वीर बनते हैं, क्रिया से नहीं। विवेचन-सम्यक क्रियावाद और क्रियावादियों के नेता-प्रस्तुत तीन सूत्रगाथाओं में सम्यक् क्रियावाद के सम्बन्ध में पांच रहस्य प्रस्तुत किये गए हैं-(१) क्रियावाद के नाम पर पापकर्म (दुष्कृत्य) करने वाले कर्म क्षय करके मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकते, (2) कर्मों का सर्वथा क्षय करने हेतु महाप्राज्ञ साधक सावद्यनिरवद्य सभी कर्मों के आगमन को रोक कर अन्त में सर्वथा अक्रिय (योगरहित) अवस्था में पहुँच जाते हैं / अर्थात् कथञ्चित् सम्यक् अक्रियावाद को भी अपनाते हैं। (3) ऐसे मेधावी साधक लोभमयी क्रियाओं से सर्वथा दूर रहकर यथालाभ सन्तुष्ट होकर पाप युक्त क्रिया नहीं करते / (4) ऐसे सम्यक क्रियावादियों के नेता या तो स्वयबुद्ध होते हैं, या सर्वज्ञ होते हैं. उनका कोई नेता नहीं होता। वे लोक के अतीत, अनागत एवं वर्तमान वृत्तान्तों को यथावस्थित रूप से जानते हैं, और संसार के कारणभूत कर्मों का अन्त कर देते हैं / (5) ऐसे महापुरुष पाप कर्मों से घृणा करते हुए प्राणिवध की आशंका से (क्रियावाद के नाम पर) न तो स्वयं पापकर्म करते हैं, न दूसरों से करवाते हैं / वे सदैव पापकर्म से निवृत्त रहते हुए संयमानुष्ठान में प्रवृत्त रहते हैं, यही उनका ज्ञानयुक्त सम्यक् क्रियावाद है, जबकि अन्यदर्शनी ज्ञान मात्र से ही वीर बनते हैं, सम्यक् क्रिया से दूर रहते।'' सम्यक क्रियावाद का प्रतिपादक और अनुगामी 552. डहरे य पाणे बुड्ढे य पाणे, ते आततो पासति सव्वलोए। उहती लोगमिणं महतं, बुद्धऽप्पमत्तेसु परिवएज्जा // 18 // 553. जे आततो परतो यावि गच्चा, अलमप्पणो होति अलं परेसि / तं जोतिभूतं च सताऽवसेज्जा, जे पाउकुज्जा अणवीयि धम्मं // 19 // 11 सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 220 से 221 का निष्कर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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