________________ समवसरण-द्वादश अध्ययन प्राथमिक O सूत्रकृतांग सूत्र (प्र० श्रृ०) के बारहवें अध्ययन का नाम 'समवसरण' है। - समवसरण शब्द के-एकत्रमिलन, मेला, समुदाय, साधु समुदाय, विशिष्ट अवसरों पर अनेक साधुओं के एकत्रित होने का स्थान, तीर्थंकर देव की परिषद्, (धर्मसभा), धर्म-विचार, आगम विचार, आगमन आदि अर्थ होते हैं।' नियंक्तिकार ने निक्षेप दृष्टि से समवसरण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इसके नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव, ये 6 निक्षेप किये हैं। नाम और स्थापना तो सुगम है। सचित्त, अचित्त या मिश्र द्रव्यों का समवसरण-एकत्रीकरण या मिलन द्रव्य समवसरण है। जिस क्षेत्र या जिस काल में समवसरण होता है, उसे क्रमशः क्षेत्र समवसरण और काल समवसरण कहते हैं। भाव समवसरण है-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक आदि भावों का संयोग। . / प्रस्तुत अध्ययन में देवकृत तीर्थंकर देव-समवरण विवक्षित नहीं है, अपितु विविध प्रकार के वादों (मतों) और मतप्रवर्तकों का सम्मेलन अर्थ ही समवसरण पर से अभीष्ट है / नियुक्तिकार ने इसे भावसमवसरण में परिगणित किया है। अर्थात्-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी या भेद सहित इन चारों वादों (मतों) की (एकान्तदृष्टि) के कारण भूल बताकर जिस सुमार्ग में इन्हें स्थापित किया जाता है, वह भाव समवरण है / प्रस्तुत अध्ययन में इन चार मतों (वादों) का उल्लेख है। - जो जीवादि पदार्थों का अस्तित्व मानते हैं, वे क्रियावादी हैं, इसके विपरीत जो जीवादि पदार्थों का अस्तित्व नहीं मानते, वे अक्रियावादी हैं। जो ज्ञान को नहीं मानते, वे अज्ञानवादी और जो विनय से ही मोक्ष मानते हैं, वे विनयवादी हैं / नियुक्तिकार ने क्रियावादी के 180, अक्रियावादी 1 पाइअ सहमहष्णवो पृ० 876 2 (क) सूत्र कृ० नियुक्ति गा० 116 से 118 (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 208 से 210 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org