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________________ सूत्रकृतांग-पंचम अध्ययन- नरकधिभक्ति दुःखों से वास्ता पड़ता है और देवगति में भी ईर्ष्या, कलह, ममत्वजनित दुःख, वियोगदुःख, नीचजातीय देवो में उत्पत्ति आदि अनेकों दुःख है। मतलब यह है कि नरकगति की तरह तिर्यञ्च, मनुष्य या देवगति में भी दुःखमय वातावरण प्रत्यक्ष देखा जाता है। इसी आशय से शास्त्रकार कहते हैं-"एवं तिरिक्वे मणयामरेसू"""इति वेदयित्ता..."."" इसका आशय यह है कि चार' गतियों में भावनरक की प्राप्ति या नारकीय द:खमय वातावरण सम्भव है, इसलिए चतुर्गतिपर्यन्त अनन्त संसार को दःखमय समझो। इन चारों गतियों के कारणों तथा चारों गतियों में कृत-कर्मों के अनुरूप विपाक (कर्मफल) को समझे। तथा मृत्युपर्यन्त इस प्रकार की संसार दृष्टि के चक्कर में न आकर एक मात्र ध्रुव यानी मोक्ष दृष्टि रखकर संयमाचरण करे तथा पण्डितमरण के अवमर की प्रतीक्षा करे / पाठान्तर और व्याख्या-धुबमादरंतो व अर्थात् मोक्ष या संयम; उसका अनुष्ठान करता हुआ। चणिकारसम्मत पाठान्तर है-धुतमाचरंति-~"धूयतेऽनेन कर्म इति धुतं चारित्रमित्युक्तम् / आचार इति क्रियायोगे, आचरन्, आचरंतो वा चरणामिति / " अर्थात्-जिससे कर्म धुना-नष्ट किया जाय, उसे धुनचारित्र कहते हैं। उसका आचरण करता हुमा अर्थात् क्रियान्वित करता हुआ। खेज्ज कालं = काल की आकांक्षा करे। इसका रहस्य आचारसंग सुत्र को वृत्ति के अनुसार है-पण्डितमरण के काल (अवसर) की प्रतीक्षा करे। द्वितीय उद्देशक समाप्त // निरय (नरक) विभक्ति : पंचम अध्ययन सम्पूर्ण // 8 (क) “च उहिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणिय (आउय) त्ताए कम्म गरेंति, तंजहा 1. माइल्लताए, 2. नियडिल्लताए, 3. अलियवयणेणं, 4, कुडनुल्ल-क डमाणेणं / " (ख) 'चउहिं ठाणेहि जीवा मणुस्साउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तंजहा--- 1. पगति भद्दताए, 2. पगति विणीययाए; 3. साणुक्कोसयाए, 4. अमच्छरिताए।' (ग) चहि ठाणेहि जीवा देवाउयत्ताए कम्म पगरेति तंजहा१. सरागसंजमेणं, 2. संजमासंजमेणं, 3. वालतवो कम्मेणं, 4. अकामणिज्जराए।" -ठाणं, स्था० 4, उ०४, सू० 626, 630, 630 6 (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 141 (ख) सूयगडंग चूणि (मू० पा० टिप्पण) पृ०६२ 10 देखिये आवारांग मून विवेचन प्र० श्रु० सु० 116, अ०३, उ०२ पृ० 100 में 'कालकं खी' शब्द का विवेचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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