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________________ नरक-विभक्ति : पंचम अध्ययन प्राथमिक - सूत्रकृतांग सूत्र (प्र० श्रु०) के पंचम अध्ययन का नाम निरयविभक्ति अथवा नरकविभक्ति है / ' 3 कर्म-सिद्धान्त के अनुसार जो जीव हिंसा, असत्य, चोरी, कुशीलसेवन, महापरिग्रह, महारम्भ, पंचेन्द्रियजीवहत्या, मांसाहार आदि पापकर्म करता रहा है, उससे भारी पापकर्मों का बन्ध होता है, तथा उस पापकर्मबन्ध का फल भोगने हेतु नरक (नरक-गति) में जन्म लेना पड़ता है / और यह सर्वज्ञ जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित आगमों से सिद्ध है / ' // वैदिक, बौद्ध और जैन, तीनों परम्पराओं में नरक के महादुःखों का वर्णन है। योगदर्शन के व्यासभाषय में 6 महानरकों का वर्णन है। भागवतपुराण में 27 नरक गिनाए गए हैं। बौद्धपरम्परा के पिटकग्रन्थ सुत्तनिपात के कोकालियसुत्त में नरकों का वर्णन है। अभिधर्मकोष के तृतीयकोश स्थान के प्रारम्भ में 8 नरकों का उल्लेख है। इन सब स्थलों को देखने से प्रतीत होता है-नरकविषयक मान्यता सभी आस्तिक दर्शनों में अति प्राचीन काल से चली आ रही है, और भारतीय धर्मों की तीनों शाखाओं में नरक-वर्णन एक-दूसरे से काफी मिलता-जुलता है। उनकी शब्दावली भी बहुत कुछ समान है। 10 यों तो नरक एक क्षेत्रविशेष (गति) का नाम है, जहाँ जोव अपने दुष्कर्मों का फल भोगने के लिए जाता है, स्थिति पूर्ण होने तक रहता है / अथवा घोर वेदना के मारे जहाँ जीव चिल्लाता है, सहायता के लिए एक-दूसरे को सम्बोधित करके बुलाता है, वह नरक है। अथवा घोर पापकर्मी जीवों को जहाँ दुर्लध्य रूप से बुला लिया जाता है, वह नरक है। 1 वृत्तिकार के अनुसार इस अध्ययन का नाम 'नरकविभक्ति' है। 2 सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या पृ० 572 3 जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास भा० 1 पृ. 146 4 सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या पृ० 574 में देखिये नरक की परिभाषा (अ) नरान् कायन्ति शब्दयन्ति, योग्यताया अनतिक्रमेणाऽऽकारयन्ति जन्तुन् स्व-स्व स्थाने इति नरकाः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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