________________ 274 सूत्रकृतांग-चतुर्थ अध्ययन-स्त्रीपरिज्ञा चित्त) उस साधु को वे स्त्रियां बाद में अपने वशीभूत जानकर अपना पैर उठाकर उसके सिर पर प्रहार करती हैं। 280. (नारी कहती है.-.) हे भिक्षो ! यदि मुझ केशों वाली स्त्री के साथ (लज्जावश) विहार (रमण) नहीं कर सकते तो मैं यहीं (इसी जगह) केशों को नोच डालूंगी; (फिर) मुझे छोड़कर अन्यत्र कहीं विचरण मत करना। 281. इसके पश्चात् (जब स्त्री यह जान लेती है कि) यह (साधुवेषी) मेरे साथ घुलमिल गया है, या मेरे वश में हो गया है. तब वह उस (साधुवेषी) को (दास के समान) अपने उन-उन कार्यों के लिए प्रेरित करती-भेजती है / (वह कहती है—) तुम्बा काटने के लिए छुरी (मिले तो) देखना, और अच्छेअच्छे फल भी लेते आना / 282. (किसी समय स्त्री नौकर की तरह आदेश देती है-) 'सागभाजी पकाने के लिए इन्धनलकड़ियां (ले आओ), रात्रि (के घोर अन्धकार) में तेल आदि होगा, तो प्रकाश होगा। और जरा पात्रों (बर्तनों) को रँग दो या मेरे पैरों को (महावर आदि से) रंग दो। इधर आओ, जरा मेरी पीठ मल दो।' 283. अजी ! मेरे वस्त्रों को तो देखो, (कितने जीर्ण-शीर्ण हो गए हैं ? इसलिए दूसरे नये वस्त्र ले आओ); अथवा मेरे लिए (बाजार में अच्छे-से) वस्त्र देखना अथवा देखो, ये मेरे वस्त्र, (कितने गंदे हो गए हैं इन्हें धोबी को दे दो।) अथवा पेरे वस्त्रों की जरा देखभाल करना, कहीं सुरक्षित स्थान में इन्हें रखो, ताकि चहे, दीमक आदि न काट दें। मेरे लिए अन्न और जल (पेय पदार्थ) माँग लाओ। मेरे लिए कपूर, केशतेल, इत्र आदि सुगन्धित पदार्थ और रजोहरण (सफाई करने के लिए बुहारी या झाड़न) लाकर दो। मैं केश-लोच करने में असमर्थ हूँ, इसलिए मुझे नाई (काश्यप) से बाल कटाने की अनुज्ञा दो। 284. हे साधो ! अब मेरे लिए अंजन का पात्र (सुरमादानी, कंकण-बाजूवंद आदि आभूषण और घुघरदार वीणा लाकर दो, लोध्र का कल और फूल लाओ तथा चिकने बास से बनी हुई बंशी या वाँसुरी लाकर दो, पौष्टिक औषध गुटिका (गोली) भी ला दो। 285. (फिर वह कहती है-प्रियतम !) कुष्ट (कमलकुष्ट) सगर और अगर (ये सुगन्धित पदार्थ) उशीर (खसखस) के साथ पीसे हुए (मुझें लाकर दो।) तथा मुख (चेहरे पर लगाने का मुखकान्ति वर्द्धक) तेल एवं वस्त्र आदि रखने के लिए बांस की बनी हुई संदूक लाओ। 286. (प्राणवल्लभ !) मुझे ओठ रंगने के लिए नन्दीचूर्णक ला दीजिए, यह भी समझ लीजिए कि छाता और जूता भी लाना है / और हाँ, सागभाजी काटने के लिए शस्त्र (वाकू या छुरी) भी लेते आए। मेरे कपड़ें गहरे या हल्के नीले रंग से रंगवा दें। २८७.'(शीलभ्रष्ट पुरुष से स्त्री कहती है-प्रियवर ! ) सागभाजी आदि पकाने के लिए तपेली या 'बटलोई (सफणि) लाओ। साथ ही आँवले, पानी लाने-रखने का घडा (वर्तन), तिलक और अंजन लगाने की सलाई भी लेते आना। तथा ग्रीष्मकाल में हवा करने के लिए एक पंखा लाने का ध्यान रखना। . : 288. (देखो प्रिय !) नाक के वालों को निकालने के लिए एक चींपिया, केशों को संवारने के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org