________________ 251 प्रथम उद्देशक : माथा 247 से 277 256. अह सेऽणुतप्पती पच्छा, भोच्चा पायसं व विसमिस्सं / एवं विवेगमायाए, संवासो न कप्पती दविए // 10 // 257. तम्हा उ वज्जए इत्थी, विसलित्तं व कंटगं गच्चा। ओए कुलाणि वसवत्ती, आघाति ण से वि णिग्गंथे / / 11 / / 258. जे एवं उंछ अणुगिद्धा, अण्णयरा हु ते कुसीलाणं / सुतवस्सिए वि से भिक्खू, णो विहरे सह णमित्थोसु // 12 // 256. अवि धूयराहि सुण्हाहि, धातीहि अदुव दासीहि / महतोहि वा कुमारोहि, संथवं से णेव कुज्जा अणगारे / / 13 // 260. अदु णातिणं व सुहिणं वा, अप्पियं दठ्ठ एगता होति / गिद्धा सत्ता कामेहि, रक्खण-पोसणे मणुस्सोऽसि // 14 // 261. समणं पि वठ्ठदासीणं, तत्थ वि ताव एगे कुष्पंति / अदुवा भोषणेहिं गत्थेहि, इत्योदोससंकिणो होति // 15 // 262. कुव्वंति संथवं ताहि, पन्भट्ठा समाहिजोगेहि / तम्हा समणा ण समेति, आतहिताय सण्णिसेज्जाओ॥ 16 // 263. बहवे गिहाई अवहटु, मिस्सोभावं पत्थुता एगे। धुवमग्गमेव पवदंति, वायावीरियं कुसोलाणं / / 17 // 264. सुद्ध रवति परिसाए, अह रहस्सम्मि दुक्कडं करेति / जाणंति य णं तहावेदा, माइल्ले महासढेऽयं ति // 18 // 265. सय बुक्कडं च न वयइ, आइट्ठो वि पकत्थती बाले। वेयाणवीइ मा कासी, चोइज्जतो गिलाइ से भुज्जो // 16 // 266. उसिया वि इत्थिपोसेसु, पुरिसा इस्थिवेदखेतण्णा। पण्णासमन्निता वेगे, णारीण वसं उवकसंति // 20 // 267. अवि हत्थ-पादछेदाए, अदुवा वद्धमंस उक्कते। अवि तेयसाऽभितवणाई, तच्छिय खारसिंचणाई च // 21 // 268. अदु कण्ण-णासियाछेज्जं, कंठच्छेदणं तितिक्खंति / इति एत्थ पावसंतत्ता, न य बेंति पुणो न काहि ति // 22 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org