________________ 'इत्थीपरिण्णा'-चउत्थं अज्झयणं पढमो उद्देसओ स्त्रीसंगरूप उपसर्ग : विविध रूप: सावधानी की प्रेरणाएँ 247. जे मातर च पितरं च, विष्पजहाय पुटवसंयोग। एगे सहिते चरिस्सामि, आरतमेहुणे विवित्तेसी // 1 // 248. सुहमेण तं परक्कम्म, छन्नपदेण इथिओ मंदा। उवायं पि ताओ जाणिसु, जह लिस्संति भिक्खुणो एगे // 2 // 246. पासे भिसं निसीयंति, अभिक्खणं पोसवत्थ परिहिति / कायं अहे वि वंसेंति, बाहुमुटु कक्खमणुवज्जे // 3 // 250. सयणा-ऽऽसणेण जोग्गेण, इत्थीओ एगया निमंतेति / एताणि चेव से जाणे, पासाणि विरूवरूवाणि // 4 // 251. नो तासु चक्खु संधेज्जा, नो वि य साहसं समभिजाणे / नो सद्धियं पि विहरेज्जा, एवमप्पा सुरक्खिओ होइ // 5 // 252. आमंतिय ओसवियं वा, भिक्खु आयसा निमंतति / एताणि चेव से जाणे, सद्दाणि विरूवरूवाणि // 6 // 253. मणबंधणेहि, णेगेहि, कलुणविणीयमुवगसित्ताणं / अदु मंजुलाई भासंति, आणवयंति भिन्नकहाहि / / 7 // 254. सोहं जहा व कुणिमेणं, णिब्भयमेगचर पासेणं / एवित्थिया उ बंधति, संवुडं एगतियमणगारं // 8 // 255. अह तत्थ पुणो नमयंति, रहकारु व्व णेमि आणुपुठवीए। बद्ध मिए व पासेणं, फंदंते वि ण मुच्चती ताहे // 6 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org