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________________ 224 सूत्रकृतांग : तृतीय अध्ययन : उपसर्गपरिज्ञा चउत्थो उद्देसओ चतुर्थ उद्देशक महा पुरुषों की दुहाई देकर संयम-भ्रष्ट करने वाले उपसर्ग 225. आहंसु महापुरिसा पुवि तत्ततयोधणा। उदएण सिद्धिमावण्णा तत्थ मंदे विसीयती // 1 // 226. अभुजिया णमी वेदेही रामगुत्ते य भुजिया / बाहुए उदगं भोच्चा तहा तारागणे रिसो // 2 // 227. आसिले देविले चेव दीवायण महारिसी / पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य / / 3 / / 228. एते पुन्वं महापुरिसा आहिता इह संमता। भोच्चा बोओदगं सिद्धा इति मेतमणुस्सुतं // 4 // 226. तत्थ मंदा विसीयंति वाहछिन्ना व गद्दभा। पिट्ठतो परिसप्पंति पीढसप्पी व संभमे // 5 // 225. कई (परमार्थ से अनभिज्ञ) अज्ञजन कहते हैं कि प्राचीनकाल में तप्त (तपे तपाए) तपोधनी (तपरूप धन से सम्पन्न) महापुरुष शीतल (कच्चे) पानी का सेवन करके सिद्धि (मुक्ति) को प्राप्त हुए थे। (ऐसा सुनकर) अपरिपक्व बुद्धि का साधक उसमें (शीतजल के सेवन में) प्रवृत्त हो जाता है। 226. वैदेही (विदेह देश के राजा) नमिराज ने आहार छोड़कर और रामगुप्त ने आहार का उपभोग करके, तथा बाहुक ने एवं तारायण (तारायण या नारागण) ऋषि ने शीतल जल आदि का सेवन करके (मोक्ष पाया था / ) 227. आसिल और देवल ऋषि ने, तथा महर्षि द्वैपायन एवं पाराशर ऋषि (आदि) ने शीतल (सचित्त) जल बीज एवं हरी वनस्पतियों का उपभोग करके (मोक्ष प्राप्त किया था।) 228. पूर्वकाल में ये महापुरुष सर्वत्र विख्यात थे। और यहाँ (आर्हत प्रवचन में) भी ये (इनमें से कोई-कोई त (माने गये) हैं। ये सभी सचित्त बीज एवं शीतजल का उपभोग करके सिद्ध (मुक्त) हुए थे; ऐसा मैंने (कुतीर्थिक या स्वयूथिक ने) (महाभारत आदि पुराणों से) परम्परा से सुना है। 226. इस प्रकार की भ्रान्तिजनक (बुद्धिभ्रष्ट या आचारभ्रष्ट करने वाले) दुःशिक्षणरूप उपसर्ग के होने पर मन्दबुद्धि साधक भारवहन से पीड़ित गधों की तरह दुःख का अनुभव करते हैं / जैसे लकड़ी के टुकड़ों को पकड़कर चलने वाला (पृष्ठसपी) लंगड़ा मनुष्य अग्नि आदि का उपद्रव होने पर (भगदड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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