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________________ 68 सत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन-समय है-देवों या देव द्वारा रक्षित / सारा जगत् किसी देव द्वारा रक्षित है। देवपुत्र का अर्थ है- यह जगत् तथाकथित देव का पुत्र सन्तान है, जिसने संसार को उत्पन्न किया है / (2) ब्रह्मरचितलोक-कोई प्रजापति ब्रह्मा द्वारा लोक की रचना मानते हैं। उनका कहना है-- मनुष्य में इतनी शक्ति कहाँ कि इतनी विशाल व्यापक सृष्टि की रचना और सुरक्षा कर सके / और देव भले ही मनुष्यों से भौतिक शक्ति में बढ़े-चढ़े हों, लेकिन विशाल ब्रह्माण्ड को रचने में कहाँ समर्थ हो सकते हैं ? वही सारे संसार को देख सकते हैं। जैसा कि उपनिषद में कहा है- "सृष्टि से पहले हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा) अकेला ही था।" मुण्डकोपनिषद् में तो स्पष्ट कहा है-विश्व का कर्ता और भुवन का गोप्ता (रक्षक) ब्रह्मा देवों में सर्वप्रथम हुआ। तैत्तिरीयउपनिषद में कहा गया है-उसने कामना की--"मैं एक हूँ, बहुत हो जाऊँ, प्रजा को उत्पन्न करूं।" उसने तप तथा तपश्चरण करके यह सब रचा-सृजन किया-प्रश्नोपनिषद में भी इसी का समर्थन मिलता है। इसी तरह छान्दोग्य-उपनिषद में पाठ है। बृहदारण्यक में ब्रह्मा के द्वारा सृष्टि रचना की विचित्र कल्पना बतायी गयी है और क्रम भी। "ब्रह्मा अकेला रमण नहीं करता था। उसने दसरे की इच्छा की। जैसे स्त्री-पुरुष परस्पर आश्लिष्ट होते हैं, वैसे ब्रह्मा ने अपने आपके दो भाग किये और वे पति-पत्नी के रूप में हो गये। पहले मनुष्य फिर गाय, बैल, गर्दभी, गर्दभ, बकरी, बकरा, पशु-पक्षी आदि से लेकर चींटी तक सब के जोड़े बनाये / उसे विचार हुआ कि मै सृष्टि रूप हूँ, मैंने ही यह सब सृजन किया है, ''इस प्रकार सृष्टि हुई। एक वैदिक पुराण में सृष्टि क्रम बताया है कि पहले देवकृत जगत् के प्रमाण उपनिषदों में(क)"..."दिवमेव भवामो""सुतेजा आत्मा वैश्वानरो""इत्यादित्यमेव भगवो राजनिति होवाचेष बै विश्वरूपं आत्मा वैश्वानरो यं त्वमात्मानमुपास्से तस्मात्तव बहु विश्वरूपं कुले दृश्यते // 1 // ..........." """वायुमेव भगवो "मुपास्से "इत्याकाशमेव भगवो राजनिति "बहुलोऽसि प्रजया धनेन च // 1 // इत्यप एव भगवो राजनिति होवाचष वै सयिरात्मा वैश्वानरो "तस्मात्त्वं रयिमान् पुष्टिमानसि ॥""पृथिवीमेव भगवो राजन इति होवाचेष वै प्रतिष्ठात्मा वैश्वानरो यं त्वमात्मा न मुपास्से"तस्मात्वं प्रतिष्ठितोऽसि प्रजया च पशुभिश्च // 1 // "यूयं पृथगिवेममात्मानं वैश्वानरं विद्वसोऽन्नमात्थ यस्त्वेतमेवं प्रादेसमात्रमभिविमानमात्मानं वैश्वानरमुपास्ते स सर्वेषु लोकेष भूतेषु सर्वेष्वात्मस्वन्नमस्ति // 1 // -छान्दोग्योपनिषद् खण्ड 12 से 18 तक अध्याय 5 (ख) "स ईक्षतः लोकान्नु सृजा इति / स इमाल्लोकानसृजत / अम्भो मरीचिमरमापोऽम्भः परं दिवं द्यौः प्रतिष्ठाऽन्तरिक्ष मरीचयः॥ --ऐतरेयोपनिषद्, प्रथम खण्ड (ग) सूत्रकृतांग शीलांकत्ति पत्रांक 42 के आधार पर 6 ब्रह्मा द्वारा रचित जगत् के प्रमाण"हिरण्यगर्भः समवर्तताऽग्रे, स ऐक्षत, ..."तत्ते जाऽमृजत / " -छान्दोग्योपनिषद् खण्ड 2 श्लोक 3 7 (क) ओ३म् ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्य कर्ता, भुवनस्य गोना। -~-मुण्डकोपनिषद खण्ड 1 श्लोक 1 (ख) सोऽकामयत / बहु स्यां प्रजायेयेति / स तपोऽतप्यत / स तपस्तप्त्वा इदं सर्वमसूजन // -तत्तिरीयोपनिषद अनुवाक् 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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