________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्र तस्कन्ध जाव-पद ग्राह्य पाठ फासुयं "जाव समग्र पाठ युक्त मूल सूत्र-संख्या 325 संक्षिप्त संकेतित सूत्र 335, 337, 360, 366, 367, 406, 556, 571, 625, 628 301, 304 388 425, 437 बहुपाणा ""जाव बहुरयं वा जाव भगवंतो"जाव भिक्खुणीए' जाव भिक्खू वा "जाव ammmmm 325-327, 330-332, 336, 337, 343, 348, 52-355, 357, 356363, 365-371, 273388, 361, 363-365, 404, 405, 406 682-684 568 607 444 417 760 भिक्खू बा 2 जाब मणी वा जाव मत्तयं वा जाव मुलाणि वा जाव रज्जमाणे जाव रज्जेज्जा जाव ला जाव वत्थं वा 4 वप्पाणि वा जाव स अंडं..."जाव 760 473 4.71 166 324 412, 455, 566, 623, 626, 630, 787,760 455 760 466-468 348,564 787 325 760 865 / 785 528 535 564, 572 सअंडे'"जाव संतिभेदा""जाव संथारमं जाव लाभे सज्जमाणे "जाव समण जाव समणमाण जाव सम्म जाव आणाए सावज्ज जाव सिणाणेण वा जाव सिलाए जाव सीलमंता जाव सूभिमंधे ति वा 2 हत्थं जाव हत्थं वा "जाव हत्थिकरणद्वाणाणि वा हत्थिजुदाणि वा जाव 421 437 176 460.-487 416,444, 456 676 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org