________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र 777 363 ‘आइक्खति, भासेति, परूवेति' इन तीन क्रिया पदों में अन्तर---यों तो तीनों क्रियापद समानार्थक प्रतीत होते हैं, परन्तु प्राकृत शब्दकोष के अनुसार इनके अर्थ में अन्तर है आइति' का अर्थ है--सामान्यरूप से कथन करता है, 'भासेति' का अर्थ है-विशेषरूप से व्याख्या करता है और 'परूवैति' का अर्थ है-सिद्धान्त और तद्व्यतिरिक्त वस्तु तत्त्व का प्रतिपादन करता है / ये तीनों क्रिया पद भगवान द्वारा दिये गए उपदेश की शैली एवं क्रम को सुचित करते हैं।' प्रथम महाव्रत 777. पढम भंते ! महब्वयं पच्चक्खामि सवं पाणातिवातं / से सुहम वा बायरं वा तसं वा थावरं वा णेव सयं पाणातिवातं करेज्जा 3' जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा / तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि / / 777. भंते ! मैं प्रथम महाव्रत में सम्पूर्ण प्राणातिपात (हिंसा) का प्रत्याख्यान ---- त्याग करता हूँ। मैं सूक्ष्म-स्थूल (बादर) और त्रस-स्थावर समस्त जीवों का न तो स्वयं प्राणातिपात (हिंसा) करूगा, न दूसरों से कराऊंगा और न प्राणातिपात करने वालों का अनमोदन समर्थन करूगा; इस प्रकार मैं यावज्जीवन तीन करण से एवं मन-वचन काया मे--तीन योगों से इस पाप से निवृत्त होता हूँ। हे भगवन ! मैं उस पूर्वकृत पाप (हिंसा) का प्रतिक्रमण करता, (पीछे हटता) हूँ,(आत्म-साक्षी से--) निन्दा करता हूं, और(गुरु साक्षी से—) गर्दा करता हूं; अपनी आत्मा से पाप का व्युत्सर्ग (पृथक्करण) करता हूं।" विवेचन--प्रथम महावत को प्रतिज्ञा का रूप-प्रस्तुत सूत्र में भगवान् द्वारा उपदिष्ट प्रथम महाबत---प्राणातिपात-विरमण (अहिंसा) की प्रतिज्ञा का रूप दिया गया है। इसमें मुख्यतया 3 बातों का उल्लेख है--(१) हिस्य जीवों के मुख्य प्रकार का (2) प्राणातिपात का जीवनभर तक, तीन करण-(कृत-कारित-अनुमोदन) से तथा तीन योग (मन-वचन-काया) से सर्वथा त्याग का, और (3) पूर्वकाल में किये हुए प्राणातिपात आदि के पाप का प्रतिक्रमण, आत्म-निन्दा, गर्दा और व्युत्सर्ग का / 1. (क) पाइअसहमण को पृ० 101, 650, 668 // (ख) आचारांग चूणि मू० पा० टि० पृ० 278 / / 2. पढम भते ! महव्वयं के बदले पाठान्तर है.-पढमे भते ! मह स्व ए। 3. '3' का अंक अवशिष्ट दो कारणों-कारित और अनुमोदित का सूचक है। जैसे-'नेवऽअण्णं पाणातिवातं कारवेज्जा, अण्ण पि पाणातिवात करत ण समण जाणेज्जा।' इतना पाठ यहाँ समझना चाहिए। देखें 1. 'क्यसा' के बदले पाठान्तर है--'वायसा' / 5. गरहामि' के बदले पाठान्तर है.-'गरिहामि / ' (क) आचारांग मूलपाठ सटिप्पण पृ. 276 (ख) तुलना कीजिए-दशवकालिक अ० 8 सू० 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org