________________ 360 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्र तस्कन्ध सहस्रवाहिनी चन्द्रप्रभा शिविका को रख देते हैं। तब भगवान् उसमें से शनैःशनैः नीचे उतरते हैं; और पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर अलंकारों को उतारते हैं। तत्काल ही वैश्रमणदेव घटने टेककर श्रमण भगवान महावीर के चरणों में झुकता है और भक्तिपूर्वक उनके उन आभरणालंकारों को हंसलक्षण सदृश श्वेत वस्त्र में ग्रहण करता है। उसके पश्चात् भगवान् ने दाहिने हाथ से दाहिनी ओर के, और बांए हाथ से बांई ओर के केशों का पञ्चमुष्ठिक लोच किया। तत्पश्चात् देवराज देवेन्द्र शक श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष घुटने टेककर चरणों में झुकता है और उन केशों को हीरे के (वनमय) थाल में ग्रहण करता है। तदनन्तर-भगवन् ! आपकी अनुमति है;' यों कहकर उन केशों को क्षीर समुद्र में प्रवाहित कर देता है। इधर भगवान् दाहिने हाथ से दाहिनी ओर के और बाए हाथ से बांई ओर के केशों का पंचमुष्टिक लोच पूर्ण करके सिद्धों को नमस्कार करते हैं; और 'आज से मेरे लिए सभी पापकर्म अकरणीय हैं', यो उच्चारण करके सामायिक चारित्र अंगीकार करते हैं / उस समय देवों और मनुष्यों दोनों की परिषद् चित्रलिखित-सी निश्चेष्ट-स्थिर हो गई थी। 767. जिस समय भगवान् चारित्र ग्रहण कर रहे थे, उस समय शकेन्द्र के आदेश (वचन) से शीघ्र ही देवों के दिव्य स्वर, वाद्य के निनाद और मनुष्यों के शब्द स्थगित कर दिये गए, (सब मौन हो गए) // 128 / / / 768. भगवान् चारित्र अंगीकार करके अहर्निश समस्त प्राणियों और भूतों के हित में संलग्न हो गए। सभी देवों ने यह सुना तो हर्ष म पुलकित हो उठे। विवेचन-भगवान् का अभिनिष्क्रमण और सामायिक चारित्र ग्रहण -सू० 766 से 768 तक भगवान् के अभिनिष्क्रमण एवं सामायिक चारित्र-ग्रहण का रोचक वर्णन है। इनमें मुख्यतया 7 बातों का प्रतिपादन किया गया है--(१) मास, पक्ष, दिन, मुहूर्त. नक्षत्र, छाया एवं प्रहर सहित दीक्षाग्रहण-समय का उल्लेख, (2) षष्ठभक्तयुक्त भगवान् की शिविका ज्ञातखण्ड उद्यान में पहुंची, (3) शिविका से उतरकर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर भगवान् विराजे, (4) आभूषण उतारे, जिन्हें वैश्रमणदेव ने श्वेतवस्त्र में सुरक्षित रख लिए, (5) केशों का पंचमुष्ठिक लोच किया, जिन्हें शक्रेन्द्र ने वज्रमय थाल में ग्रहण करके भगवान् की अनुमति समझ कर क्षीरसागर में बहा दिया, (6) सिद्धों को नमस्कार करके सामायिक चारित्र अंगीकार किया। दीक्षा ग्रहण के समय देव और मनुष्य सभी चित्रलिखित-से हो गए / इन्द्र के आदेश से देवों, मनुष्यों और वाद्यों के शब्द बंद कर दिये गये, (7) भगवान् अहर्निश समस्त प्राणियों के लिए हितकर-क्षेमकर चारित्र में संलग्न हो गए / देवों ने जब यह सुना तो उनका रोम-रोम पुलकित हो उठा।' 1. आचारांग मूलपाठ सटिप्पण पृ० 271 मे 273 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org