________________ 382 आचारांग सूत्र-द्वितीय तस्कन्ध शिविका-निर्माण 754. ततो णं सक्के देविदे देवराया सणियं 2 जाणविमाणं ठवेति / सणियं 2 [जाण] विमाणं ठवेत्ता सणियं 2 जाणविमाणातो पच्चोतरति, सणियं 2 जाणविमाणाओ पच्चोत्तरिता एगंतमवक्कमति / एगंतमवषकमित्ता महता वेउस्विएणं समुग्धातेणं समोहणति / महता वेउन्विएणं समुन्धातेणं समोहणित्ता एगं महं गाणामणि-कणग-रयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकतरूवं देवच्छंदयं विउव्वंति / तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्झदेसभागे एगं महं सपादपीठं सोहासणं गाणामणि-कणग रयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं विउव्यति, 2 [त्ता] जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेय उवागच्छति, 2 [त्ता समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो' आयाहिण-पयाहिणं करेति / समणं भगवं महावीरं तिखुत्तोआयाहिणपयाहिणं करेत्ता, समणं भगवं महावीरं वंदति, णमंसति / वंदित्ता गमंसित्ता समणं भगवं महावीरं गहाय, जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति / तेणेव उवागच्छित्ता सणियं 2 पुरस्थाभिमुहं सीहासणे णिसीयावेति / सणियं 2 पुरत्थाभिमुहं णिसीयावेत्ता, सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहि अभंगेति / सयपाग-सहस्सपागेहि तेहि अभंगेत्ता गंधकासाएहि उल्लोलति / सयपागसहस्सपाहि तेहि उल्लोलेत्ता सुद्धोवएणं मज्जावेति, २[त्ता] जस्स जंतबल, सयसहस्सेणं तिपडोलतित्तएणं साहिएण' सरसीएण गोसीसरत्तचंदणेणं अणुलिपति, 2 ता] ईसिणिस्सासवातवोज्झं वरणगर-पट्टणुग्गतं कुसलणरपसंसितं अस्सलालपेलयं छेयायरियकणगखचितंतकम्मं हंसलक्षणं पट्टजुयलं णियंसाति, 2 [ता] हारं अद्धहारं उरत्थं एगावलि पालंबसुत्त-पट्ट-मउड-रयणमालाई आविधावेति / आविधावेत्ता गंथिम-वेढिमपूरिम-संघातिमेणं मल्लेणं कप्परक्खमिव समालंकेति / समालंकेत्ता दोच्चं सि महता वेउब्वियसमुग्धातेणं समोहणति, २[त्ता] एग महं चंदप्पभं सिधियं सहस्सवाहिणियं विउधति, तंजहा-ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मकर-विहग-वाणर-कुंजर" 1. किसी-किसी प्रति में 'तिक्खुत्तों शब्द नहीं है। 2. 'पुरत्याभिमुहं' के बदले 'पुरत्थाभिमुहे' पाठान्तर है / 3. 'कासाएहि' के बदले 'कसाहि' पाठ है। 4. 'सुद्धोदएणं मज्जावेति' के बदले 'उल्लोलिति स सुद्धोदएण' उल्लोलिति 2 सुसुद्धोदएणं" पाठान्तर हैं। 5. 'जंतबलं सयसहस्सेणं' के बदले 'जंतपलं सयसहस्सेणं 'जस्स य मुल्लं सयसाहस्सेणं' पाठान्तर है। 6. इसके बदले पाठान्तर हैं—'साहीएणं गोसीस', 'साहिएण सीतएण गोसीसदूसरे का अर्थ है सिद्ध किये हुये शीतल गोशीर्ष रक्त चन्दन से / 7. 'कुसलणरयसंसितं' के बदले 'कुसलनरपइसंसितं', कुसलनरपरिनिम्मियं' ये पाठान्तर मिलते हैं मर्थ है-कुशल नरपति द्वारा प्रशंसित, कुशल मनुष्यों द्वारा परिनिर्मित / 8. 'अस्सलालपेलयं' के बदले पाठान्तर है---'अस्सलालापेलयं / ' 6. 'समाल केत्ता' के बदले 'समलंकेत्ता' और 'समलंकित्ता' पाठान्तर हैं। 10. कंजर-हरु......"वणलयचित्त' के बदले कल्पसूत्र 45 में पाठ है- कजरवणलयपउमलयभत्तिचित्तं" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org