________________ 336 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध में प्रायः मनोरंजन स्थलों में होने वाले शब्दों के उत्सुकतापूर्वक श्रवण का निषेध किया गया है। संक्षेप में इन सातों में सभी मुख्य-मुख्य मनोरंजन एवं कुतुहलवर्द्धक स्थलों में विविध कर्ण प्रिय स्वरों के श्रवण की उत्कण्ठा से साधु को दूर रहने की आज्ञा दी है-(१) भैसों, सांडों आदि के लड़ने के स्थानों में, (2) वर-वधू युगलमिलन स्थलों या अश्वादि युगल स्थानों में, (3) घुड़दौड़ कुश्ती आदि के स्थानों में तथा नृत्य-गीत-वाद्य आदि की महफिलवाले स्थानों में, (4) कलह, शत्र-सैन्य के साथ युद्ध, संघर्ष , विलम्ब आदि विरोधी वातावरण के शब्दों का (5) किसी की शोभायात्रा में किये जाने वाले जय-जयकार या धिक्कार सूचक नारे या हर्ष-शोक सूचक शब्दों का, (6) महान् आस्रव स्थलों में, (7) बड़े-बड़े महोत्सवों में होने वाले शब्द / / ___ इन्हों पाठों से मिलते-जुलते पाठ-इन सातों सूत्रों में प्रायः मिलते-जुलते स्वरों की श्रवणोत्सुकता का निषेध स्पष्ट है; निशीथ (चूणि सहित) उद्देशक बारहवें में कई सूत्र और कई पद अविकल रूप में मिलते हैं कुछ सूत्रों में अधिक पाठ भी है। जूहियट्ठाणाणि आदि पदों के अर्थ-आचारांगवृत्ति, चूणि आदि में तथा निशीथ सूत्र चूणि आदि में प्रतिपादित अर्थ इस प्रकार हैं-जूहियट्ठाणाणिजहाँ वर और वधू आदि जोड़ों के मिलन या पाणिग्रहण का जो स्थान (वेदिका, विवाहमण्डप आदि) हैं, वे स्थान। अक्खाइयट्ठाणाणि = कथा कहने के स्थान, या कथक द्वारा पुस्तक वाचन / माणुम्मणियट्ठाणाणिमान-प्रस्थ आदि का उन्मान-नाराच (गज) आदि के स्थान, अथवा मानोन्मान का अर्थ हैघोड़े आदि के वेग इत्यादि की परीक्षा करना / अथवा एक के बल का माप दूसरे के बल से अनुमानित किया जाए, अथवा माप का अर्थ वस्त्र मानोन्मानित है उनके स्थान / 'निवुज्ममाणि' =अश्व आदि ले जाती हुई / महयाहतजोर-जोर से बाजे को पीटना, अथवा महा कथानक / वाहता = तंत्री / ताल-करतल ध्वनि / महासवाई जो भारी आस्रवों-पाप कर्मों के आगमन के स्थान हों। बहुमिलक्खूणि= जिस उत्सव में बहुत-से अव्यक्तभाषी मिलते हैं, वह बहुम्लेच्छ उत्सव। अथवा जो आभाषक है, उन्हें पूछता नहीं है, वह / महुस्सवाई महोत्सव / 'मोहंताणि' =मोहोत्पत्ति करने वाली क्रिया, मोहना--मैथुनसेवन, विछड्डयमाणाणि =अलग करते हुए, त्याग करते हुए। 1. आचारांग वृत्ति पत्रांक 412 2. तुलना करिये—'जे भिक्खू उज्जूहियाठाणाणि वा णिज्जूहियाठाणाणि वा मिहोजूहियाठाणाणि वा, हयजूहियाठाणाणि वा गयजूहियाठाणाणि वा।'-निशोथ उ०-१२"एमपुरिसं वा बज्नं णिज्जमाणं / 'जे भिक्खू आधापाणि वा माणम्माणिय णम्माणि बा बुग्गहाणि वा'"डिबाणि वा डमराणि बा खाराणि वा, वेराणि वा महाजद्धाणि वा महासंगामाणि, कलहाणि वा। अभिसेमठाणाणि वा अक्खाइयाट्ठाणाणि वा माणुम्माणियाट्ठाणाणि वा मयायणट्टगीयवादिमतंतीतलतालतुडिय घणमुइंगपडप्पवाइयाणाणि वा। जे भिक्खू विरुवरुवाणि महामहाणि गच्छति / जे भिक्खू विरुव रूवेसु महुस्सवेसु परिभुजति। निशीथ उ०-१२ चणि 10 348-350 3. आचारांग वृत्ति पत्रांक 412 (ख) आचारांगचूणि टि० पृ. 245, 246, 247 निशीथचूर्णि पृ० 348-50 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org