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________________ 334 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध ट्ठाणाणि वा महयाहतनट्ट-गीत-वाइत-तंति-तलताल-तुडिय-पडुप्प-वाइयट्ठाणाणि वा अण्णतराइ' वा तहप्पगाराई सदाइ णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 63. से भिक्खू वा 2 जाव सुणेति, तंजहा-कलहाणि वा डिबाणि वा डमराणि वा दोरज्जाणि वा वेरज्जाणि वा विरुद्धरज्जाणि वा अण्णतराइ वा तहप्पगाराई सद्दाइ णो अभिसंधारेज्ज गमणाए। 684. से भिक्खू वा 2 जाव सद्दाई सुणेति, [तंजहा] -खुड्डियं दारियं परिवुतं मंडितालंकितं निवुज्झमाणि पेहाए, एगपुरिसं वा वहाए णोणिज्जमाणं पेहाए, अण्णतराई वा अभिसंधारेज्ज गमणाए। 685. से भिक्खू वा 2 अण्णतराई विरूवरूवाई महासवाई एवं जाणेज्जा, तंजहाबहुसगडाणि वा बहुरहाणि वा बहुमिलक्खूणि वा बहुपच्चंताणि वा अण्णतराईवा तहप्पगाराइविरूवरूवाइ महासवाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्ज गमणाए। 686. से भिक्खू वा 2 अण्णतराइविरूवरूवाइ महुस्सवाइ" एवं जाणेज्जा तंजहाइत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा डहराणि वा मज्झिमाणि वा आभरणविभूसियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा णच्चंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजंताणि वा परिभायंताणि वा विछड्डयमाणाणि वा विग्गोवयमाणाणि वा अण्णय राई वा तहप्पगाराइविरूवरूवाइ महुस्सवाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्ज गमणाए। 680. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-जहाँ भंसों के युद्ध, सांडों के युद्ध, अश्व-युद्ध, हस्ति-युद्ध यावत् कपिजल-युद्ध होते हैं तथा अन्य इसी प्रकार के पशु-पक्षियों के लड़ने से या लड़ने के स्थानों में होने वाले शब्द, उनको सुनने हेतु जाने का संकल्प न करे / 1. अण्णतराई के बदले पाठ है-अण्णतराणि / अर्थ समान है। 2. किसी-किसी प्रति में वेरज्जाणि वा पाठ नहीं है। 3. निवुज्झमाणि' के बदले पाठान्तर है णिबुज्झामणि, णिन्वुज्झमाणि / वृत्तिकारकृत अर्थ है--- अश्वादिना नीयमानाम् / –घोड़े आदि पर ले जाते हुए। 4. महासवाई का अर्थ वृत्ति कार ने किया है-महान्येतान्याश्रवस्थानानि पापोपादानस्थानानि वर्तन्ते / -ये महान् आश्रय स्थान-पापोपादान के स्थान हैं / 5. जाणेज्जा के बदले पाठान्तर हैं--जाणे 6. तुलना कीजिए-जे भिक्खू विरूवरूवाणि महामहाणि तंजहा-बहुरयाणि......"बहुमिलवाणि / (चणि).."अव्वत्तभासिणो जस्थ महेमिलन्ति सो बहमिलक्खोमहो, मिडादि / --निशीथ उ० 12 चूणि पृ० 350 7. तुलना कीजिए--जे भिक्खू विरूवस्वेसु महुस्सवेसू इत्थीणि वा..."डहराणि वागायंताणि वा....... मोहंताणि वा'"विउलं."परिभुजंताणि वा। ____-निशीथ उ० 12 10 350 8. विभूसियाणि के बदले पाठान्तर है--विभूसाणि / आभूषणों की साज-सज्जा से युक्त / 6. किसी-किसी प्रति में मोहताणि वा पाठ नहीं है, कहीं पाठान्तर है-भोगताणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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