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________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध याणि वा विज्जलाणि वा खाणुयाणि वा कडवाणि' वा पगत्ताणि वा दरोणि वा पदुग्गाणि वा समाणि वा विसमाणि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि [थंडिलंसि] णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। 657. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा माणुस रंधणाणि' या महिसकरणाणि वा वसभकरणाणि वा अस्सकरणाणि वा कुक्कुडकरणाणि वा मक्कडकरणाणि वा लावयकरणाणि या वट्टयकरणाणि वा तित्ति रकरणाणि वा कवोतकरणाणि वा कपिजलकर. णाणि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि [थंडिलंसि ] णो उच्चार-पासवणं वोसि रेज्जा। 658. से भिक्खू वा 2 से ज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा वेहाणसटाणेसु वा गद्धपट्ठट्ठाणेसु वा तरुपवडणट्ठाणेसु वा मेरुपवडणट्ठाणेसु वा विसभक्खणट्ठाणेसु वा अगणिफंडय (पक्खंदण ?)हाणेसु वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलं सि] गो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा / 656. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा आरामाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि [थंडिलंसि | णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। 660. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा" अट्टालयाणिवा चरियाणि वा 1. 'कडवाणि वा पगत्ताणि या' के बदले पाठान्तर हैं--कडवाणि वा पगड्डाणिवा, कडयाणि वा पगडाणि __ वा।' अथं समान है। 2. 'दरीणि' के बदले पाठान्तर हैं-दरिणि; दरियाणि / अर्थ समान है। 3. तुलना कीजिए-निशीथ सूत्र उ०१२ सू०२२ 4. 'कुक्कुडकरणाणि' के बदले पाठान्तर है---'कुक्कुरकरणाणि' अर्थ होता है-'कुत्तों के लिए बना आश्रय स्थान / ' किसी किसी प्रति में 'मक्कडकरणाणि' पाठ नहीं है। 6. 'तरुपवडणट्ठाणेसु' के बदले पाठान्तर है-'तरुपडणट्ठाणेसु'। 7. 'मेरुपवडणठाणेसु' किसी किसी प्रति में नहीं है, किसी प्रति में उसके बदले पाठान्तर है--मरुपव डणट्ठाणेसु / अर्थ समान है। 8. 'विसभक्खणट्ठाणेसु के बदले पाठान्तर है-विसभक्खयट्ठाणेसु / ' है. किसी किसी प्रति में सभाणि' पाठ नहीं है।। 10. तुलना कीजिए-निशीथ सत्र के उ० 15 णि पृ० 556 सू०६८-७४ से / 11. निशीथ उ. 3 चूणि में व्याख्या का उपसंहार करते हुए कहा है-'विभासा विस्तारण कर्तव्या जहा त्ते आयारबित्तिय सुत्तखंधे थंडिलसत्ति कए।'--व्याख्या विस्तृत रूप से करनी चाहिए, जिस प्रकार आचारांग सूत्र के द्वितीय श्र तस्कन्ध में स्थण्डिलसप्तिका में वर्णन है।' 'अट्टालयाणि वा' इत्यादि पाठ विस्तृत रूप में 'जे अद्रसि वा अदालगंमि वा पागारसि वा चरियसि दारंसि वा गोपुरंसि वा..."महाकुलेसु वा महागिहेस् वा..."' निशीथ मत्र अष्टम उद्देशक में मिलता है / देखें इसकी चूणि--(संपादन : उपाध्याय अमरमुनि) पृ० 431-438 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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