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________________ 312 आचारांग सूत्र-द्वितीय अ तस्कन्ध 646. से भिक्खू वा 2 से ज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा सअंडं सपाणं जाव' मक्कडासंताणयंसि' (ग) तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। 647. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा अप्पपाणं अप्पबीयं जाव मक्कडासंताणयं सि (णयं) तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। 648. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुहिस्स, अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स, अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स, अस्सिपडियाए बहवे समण-माहण-[अतिहिकिवण, वणीमगे पगणिय 2 समुद्दिस्स, पाणाई 4 जाव उद्देसियं चेतेति, तहप्पगारं पंडिलं पुरिसंतरगडं वा अपुरिसंतरगडं वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अण्णतरंसि वा तहरपगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। 646. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-बहवे समण-माहण-किवण-वणीमग-अतिही समुद्दिस्स पाणाई भूय-जीव-सत्ताई जाव उद्देसियं चेतेति, तहप्पगार थंडिलं अपुरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। __ अह पुणेवं जाणे [ज्जा] पुरिसंतरकडे जाव बहिया णीहडं, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। 650. से भिक्खू वा 2 से ज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा अस्सिपडियाए कयं वा कारियं वा 1. यहाँ 'जाव' शब्द से सू० 324 के अनुसार 'अपनीयं वा सपाण' से लेकर 'मक्कडासंताणयं' तक का समग्र पाठ समझें। 2. 'संताणयं' के बदले सभी प्रतियों में 'संताणयंसि' पाठ मिलता है, किन्तु 'संताणयं' पाठ ही शुद्ध प्रतीत होता है। 3. 'साहम्मिणीओ के बदले पाठान्तर है----'साहम्मिणियाओ'। 4. 'पाणाई' के बाद '4' का अंक 'भूयाइ जीवाई सत्ताई' इन तीनों अवशिष्ट शब्दों का सूचक है। तथा यहाँ 'जाव शब्द से सू० 135 के अनुसार पाणाई 4' से 'उद्देसियं' तक का पूर्ण पाठ समझें। 5. यहाँ 'अपुरिसंतरगड' के बाद "जाव 'बहिया णीहडं वा अणीहडं' पाठ भूल से अंकित लगता है, होना चाहिए.-'जाव आसेवियं वा अणासेवियं वा क्योंकि 'बहिया णीहडं वा अणीहडं वा' पाठ तो अपुरिसंतरगडं के तुरन्त बाद में ही है। वह सारा पाठ इस प्रकार है-..-'पुरिसतरगडं वा अपुरिसंतरगडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणशठ्ठियं वा, भत्तं वा अपरिभक्त वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-देखें सूत्र 331 / 6. 'वणीमम-अतिहीं' के बदले पाठान्तर हैं-चणीमगातिही, वणीमगा अतिही।। 7. यहाँ 'जाव' से 'सत्ताइं से उद्देसियं' तक का पाठ सू० 335 के अनुसार समझें। 8. यहाँ भी भूल से अपूरिसंतरकडं के बाद जाव बहिया अणीहडं पाठ है, होना चाहिए था--अपुरिसंतर कडं जाव अणासेवियं / कारण पूर्वसूत्र के टिप्पण (5) में बताया जा चुका है। यहाँ पुरिसंतरकडं के बाद 'जाव बहिया णीहडं' भूल से अंकित है, होना चाहिए-~पुरिसांतरकडं नाव आसेवियं / कारण पहले स्पष्ट किया जा चुका है। 'आयारो तह आयार चला' के सम्पादक ने भी यह पाठ नहीं दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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