________________ छठा अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 564-65 267 (1) तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा--से भिक्खू व 2 उद्दिसिय 2 पायं जाएज्जा, तंजहा -लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा जाव' पडिगाहेज्जा। पढमा पडिमा। (2) अहावरा दोच्चा पडिमा-से भिक्खू वा 2 पेहाए पायं जाएज्जा, तंजहा-गाहावई वा जाव' कम्मकरी वा, से पुवामेव आलोएज्जा, आउसो [ ति वा, भगिणी ! ति वा, दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं पायं, तंजहा-लाउयपायं वा 3, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा / दाच्चा पडिमा। (3) अहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खू वा 2 से ज्नं पुण पायं जाणेज्जा संगतियं वा वेजयंतियं वा, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा / तच्चा पडिमा।। (4) अहावरा चउत्था पडिमा--से भिक्खू वा 2 उज्झियधम्मियं पादं जाएज्जा जं चऽण्णे बढे समण-माण जाव' वणीमगा णावखंति, तहप्पगारं पायं सयं वा गं जाएज्जा' जाव पडिगाहेज्जा / चउत्था पडिमा। 565. इच्चेताणं चउण्हं पडिमाणं अण्णतरं पडिमं जहा पिंडेसणाए। 564 इन (पूर्वोक्त) दोषों के आयतनों (स्थानों) का परित्याग करके पात्र ग्रहण करना चाहिए, साधु को चार प्रतिमा पूर्वक पात्रषणा करनी चाहिए। [1] उन चार प्रतिमाओं में से पहली प्रतिमा यह है कि साधु या साध्वी कल्पनीय पात्र का नामोल्लेख करके उसकी याचना करे, जैसे कि तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र या मिट्टी का पात्र; उस प्रकार के पात्र को (गृहस्थ से) स्वयं याचना करे, या फिर वह स्वयं दे और वह प्रासुक और एषणीय हो तो प्राप्त होने पर उसे ग्रहण करे। यह पहली प्रतिमा है। 1. यहाँ जाव शब्द से 'जाएज्जा' से पडिगाहेज्जा तक का पाठ सू०४०६/३ के अनुसार समझें। 2. यहाँ 'जाव' शब्द से 'गाहावई' से 'कम्मकरी' तक का पाठ सू० 350 के अनुसार समझें। 3. यहाँ लाउयपायं के आगे 3 का अंक 'दारुपायं वा मट्टियापायं वा' पाठ का सूचक है। 4. (क) चर्णिकार के शब्दों में-"संगतियं मत्तओ, वेजयंतियं पडिग्गहओ / अहवा संगतियं बे पादा बारा वारएणं बा तत्थेग देति जत्थ पवयणदोसो नत्थि ! वेजयंतियं णाम जत्थ अन्भरहियस्स-रायादिणी उस्सवे कालकिच्चे वा भज्जिया हुडं वा छोढ णिज्जति / / (ख) वत्तिकार के शब्दों में.-"संगइयं ति दातुः स्वांगिकं परिभुक्तप्रायम् वेजयंतियं ति द्वित्रषु पात्रेषु पर्यायेणोपभुज्यमानं पात्र याचेत।" इनका अर्थ विवेचन में देखें। 5. यहाँ ‘जाव' शब्द से 'सयं 'वा' गं' से पडिग्गाहेज्जा तक का पाठ सूत्र.-४०६/३ के अनुसार समझे। 6. यहाँ 'जाव' शब्द से 'समण-माहम से 'वणीमगा' तक का पाठ का सूत्र--४०६/७ के अनुसार समझें। 7. यहाँ 'जाब' शब्द सूत्र 406/3 के अनुसार 'जाएज्जा' से 'पडिग्गाहेज्जा' तक के पाठ का सूचक है। 8. 'जहापिडेसणाए' से यहां शेष समग्र पाठ पिण्डैधणाध्ययन के 406 सत्र के अनुसार समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org