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________________ चतुर्थ अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 533-48 226 चर्बी वाला है या पकाने योग्य है आदि असभ्य सावधभाषा का प्रयोग न करे, किन्तु सौम्य, निरवद्य, गुणसूचक-शब्द प्रयोग करे / (5) गायों, बैलों आदि को देखकर यह गाय दूहने योग्य है, यह बैल बधिया करने योग्य है आदि सावध भाषा न बोलके निरवद्य गुणसूचक भाषा-प्रयोग करे / / (6) विशाल वृक्षों को देखकर ये काटने योग्य हैं या इनकी अमुक वस्तु बनाई जा सकती है आदि हिंसा-प्रेरक सावध भाषा का प्रयोग न करे। (7) वनफलों को देखकर ये खाने योग्य, तोड़ने योग्य या टुकड़े करने योग्य आदि हैं, ऐसी सावध भाषा न बोले। (5) खेतों में लहलहाते धान्य के पौधे को देखकर ये पकगए हैं, हरे हैं काटने, भुनने योग्य हैं आदि सावद्यभाषा का प्रयोग न करे, किन्तु अंकुरित, विकसित, स्थिर हैं आदि निरवद्य गुणसूचक भाषा-प्रयोग करना चाहिए।' ___इन आठ प्रकार की दृश्यमान वस्तुओं पर से शास्त्रकार ने ध्वनित कर दिया है कि सारे संसार की जो भी वस्तुएँ साधु के दृष्टिपथ में आए उनके विषय में कुछ कहते या अपना अभिप्राय सूचित करते समय बहुत ही सावधानी तथा विवेक के साथ परिणाम का विचार करके निरवद्य निर्दोष, गुणसूचक, जीवोपघात से रहित, हृदय को आघात न पहुंचाने वाली भाषा का प्रयोग करे, किन्तु कभी किसी भी स्थिति में सावध, सदोष, चित्तविघातक, जीवोपघातक आदि भाषा का प्रयोग न करे। 'गंडी' आदि पदों के अर्थ --.'गंडी' के दो अर्थ बताए गए हैं--गण्ड (कण्ठ) माला के रोग से ग्रस्त अथवा जिसके पैर और पिण्डलियों में शून्यता आ गई हो, तेयंसी -शौर्यवान। वच्चंसो= दीप्तिमान / पडिरूवं गुण में प्रतिरूप--तुल्य / पासादियं प्रसन्नता उत्पन्न करनेवाला। उबक्खडियं =मसाले आदि देकर संस्कारयुक्त पकाया हुआ भोजन / भदंग-प्रधान-मुख्य / ऊसढं =उत्कृष्ट या उच्छृित-वर्ण-गन्धादि से युक्त / परिवूढकाय =पुष्ट शरीरवाले / पमेतिले–गाढ़ी चर्बी (मेद) वाला। वज्न-वध्य या वहने योग्य / पादिम पकाने योग्य या देवता आदि को चढ़ाने योग्य / वोमा दूहने योग्य। दम्मा = दमन (बधिया) करने योग्य / गोरहगा=हल में जोतने योग्य, वाहिमा हल, धुरा आदि वहन करने में समर्थ / जुवं गवेति-युवा बैल / 'महम्बए' या 'महल्लए' =बड़ा। उदगदोणिजोग्या=जल का कुण्ड बनाने योग्य, चंगवेर काष्ठमयी पात्री। गंगल-हल। कुलिय खेत में घास काटने का छोटा काष्ठ का उपकरण / जंतलट्ठी कोल्हू या कोल्हू का लट्ठ / णाभि गाड़ी के पहिए का मध्य भाग / गंडी-गंडिक अहरन या काष्ठफलक, महालया = अत्यन्त विस्तृत वृक्ष / पयातसाला (हा) =जिनके शाखाएँ फूट गई हैं, विडिमसाला (हा) -जिनमें प्रशाखाएं फूट गई हैं / पायखज्जाई-पराल आदि में कृत्रिम ढंग से पका कर खाने 1. आचारांग वृत्ति पत्रांक 386, 360 के आधार पर 2. वही, पत्रांक 386 के आधार पर, [ख] दशवै० 3117, 50, 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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