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________________ चतुर्थ अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 533-42 223 537. से भिक्खू वा 2 असणं वा 4 उवक्खडियं पेहाए तहा वि तं णो एवं ववेज्जा, तंजहा-सुकडे ति वा, सुटुकडे ति वा, साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा, करणिज्जे ति वा। एतप्पगारं भासं सावज्ज जाव' जो भासेज्जा। 538. से भिक्खू वा 2 असणं वा 4 उवक्खडियं पेहाए एवं वदेज्जा, तंजहा-आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, भद्दयं भद्दए ति वा, ऊसडं ऊसडे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुण्णं मणुण्णे ति वा, एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा। 536. से भिक्खू वा 2 मणस्सं वा गोणं वा महिसं वा मिगं वा पसुं वा पक्खि वा सरीसिव वा जलयरं वा सत्तं परिवूढकायं पेहाए णो एवं वदेज्जा थुल्ले ति वा, पमेतिले ति वा, व? ति वा, वो ति वा, पादिमे ति वा। एतप्पगारं भासं सावज्ज जाव णो भासेज्जा। 540. से भिक्खू वा 2 मणुस्सं वा जाव जलयरं वा सत्तं परिवूहकार्य पेहाए एवं वदेज्जा–परिवूढकाए ति वा, उवचितकाए ति वा, थिरसंघयणे ति वा, चितमंस-सोणिते ति वा, बहुपडिपुण्णइदिए ति वा / एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव भासेज्जा। 541. से भिक्खू वा 2 विरूवरूवाओ गाओ पेहाए णो एवं क्देज्जा, तंजहा-गाओ दोज्झा ति वा, दम्मा ति वा गोरहगा, वाहिमा ति वा, रहजोग्गाति वा / एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा। 542. से भिक्खू वा 2 विरूवरूवाओ गाओ" पहाए एवं वदेज्जा, तंजहा-जुवंगवे ति 1. 'कल्लाणे' के बदले पाठान्तर है-'कल्लाणकडे' अर्थ होता है-कल्याण के लिए किया है। 2. जाम मन्द मे यहाँ 'सावज्ज' से लेकर 'णो भासेज्जा' तक का पाठ 524 के अनुसार समझें। 3. भद्दयं आदि का अर्थ चूणि में-भद्दगं-पहाणं, ऊसडं-उत्कृष्ट, रसाल-रसियं 4. 'जाव' शब्द से यहाँ असावज्जं से लेकर भासेज्जा तक का पाठ सूत्र 525 के अनुसार समझें / 5. 'सिरीसिवा सम्पादयो'-दशव०७/२१ चूणि में। सरीसृप-सांप। 6. पमेतिले आदि पदों के चणिकृत अर्थ—पमेदिलो-पगाढमेतो; अत्थूलोवि सुक्कमेदभरितो त्तिभण्णति। वज्झो- बधारिहो पायिमो-पाकारिहो। 7, गाओ दोज्झाओं आदि पाठों की दशवकालिक चूणि (पृ० 170-171) में इस प्रकार व्याख्या मिलती है-गाओ दोज्झाओ त्ति, 'आदि' सद्दलोवो एत्थ, तेण महिसीमातीओ दोज्झाओ दुहणपत्तकालाओ! दम्मा दमणपत्तकाला / ते य अस्सादयो वि / गोजोग्या रहा, गोरहजोगत्तणण गच्छंति गोरहगा, पंडुमधुरादीसु किसोरसरिसा गोपोतलगा, अण्णत्थ वा तरुणतरूणारोहा जे रहम्मि वाहिज्जंति, अमदप्पत्ता खुल्लगवसभा वा ते वि / वाहिमा मंगलादिसव्व समत्था / सिग्घगतयो जुग्गादिवधा रहजोगा।____— 'गाओ दोज्झाओ' में आदि शब्द का लोप है। अत: भैंस आदि दुहने योग्य, दूहने का समय हो गया है। दम्मा=दमन (बधिया) करने का समय आ गया है। वृषभ के अतिरिक्त यहां अश्व आदि को समझ लेना चाहिए। बल के योग्य रथ-गोरह, गोरथ में जुआ उठा कर चलता है, वह गोरयग है। पाण्डु मथुरा में किशोरसदृश गाय के बछड़े होते हैं या अन्यत्र तरुण जवान कंधों वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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