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________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय अ तस्कन्ध 4 समारंभ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट चेतेति / तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा जाव' आसेविते वा 2 णो ठाणं वा 3 चेतेज्जा। एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ। 414. [1] से भिक्खू बा 2 से ज्जं पुण उवरसयं जाणेज्जा बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए पगणिय 2 समुहिस्स तं चेव भाणियव्यं / [2] से भिक्खू वा 2 से ज्ज पुण उपस्सयं जाणेज्जा-बहवे समण-माहण-अतिहि किवणवणीमए समुद्दिस्स पाणाई 4 जाब घेतेति / तहपगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविते णो ठाणं वा 3 चेतेज्जा। अह पुणेवं जाणज्जा-पुरिसंतरकडे जाव आसेविते / पडिलेहित्ता पमज्मित्ता ततो संजयामेव ठाणं वा 36 चेतेजा। __413. यदि साधु ऐसा उपाश्रय जाने, जो कि (भावुक गृहस्थ द्वारा) इसी प्रतिज्ञा से अर्थात किसी एक सार्मिक साधु के उद्देश्य से प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का समारम्भ (उपमर्दन) करके बनाया गया है, उसी के उद्देश्य से खरीदा गया है, उधार लिया गया है, निर्बल से छीना गया है, उसके स्वामी की अनुमति के बिना लिया गया है, या साधु के समक्ष बनाया गया है, तो ऐसा उपाश्रय; चाहे वह पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत, उसके मालिक द्वारा अधिकृत हो या अनधिकृत, उसके स्वामी द्वारा परिभुक्त हो या अपरिभुक्त, अथवा उसके स्वामी द्वारा आसेवित हो या अनासेवित, उसमें कायोत्सर्ग, शय्या-संस्तारक या स्वाध्याय न करे। __ जैसे एक सार्मिक साधु के उद्देश्य से बनाए गए विशेषणों से युक्त उपाश्रय में कायोत्सर्गादि का निषेध किया गया है, वैसे ही बहुत-से सार्मिक साधुओं, एक साधर्मिणी साध्वी, बहुत-सी साधर्मिणी साध्वियों के उद्देश्य से बनाए हुए आदि विशेषणों से युक्त उपाश्रय में कायोत्सर्गादि का निषेध समझना चाहिए। 414. [1] वह साधु या साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो (आवास स्थान) बहुत-से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों एवं भिखारियों को गिन-गिन कर उनके उद्देश्य से प्राणी 1. यहाँ जाव शब्द से अपरिसंतरकडे से आसेविते तक का पाठ सू० ३२१के अनसार समझें। 2. आसेविते वा के बाद '2' का चिन्ह अणासेविते वा पाठ का सूचक है सूत्र 331 के अनुसार। 3. पाणाई के आगे '8' का अंक 'पाणा भूयाई जोवाइ सत्ताई' इन चारों पदों का सूचक है। 4. 'जाव' शब्द से 'समारंभ से लेकर चेतेति तक का सारा पाठ सू० 331 के अनुसार समझें। 5. यहाँ जाव शब्द से अपुरिसंतरकडे से लेकर 'अणासेविते तक पाठ सू० 331 के अनुसार समझें। 6. 'ठाणेवा' के आगे तीन का अंक 'सेज्ज वा निसीहियं वा' का सूचक है। 7. यहाँ जाव शब्द से पुरिसंतरकडे से आसेविते तक का समग्र पाठ सू० 332 के अनसार समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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