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________________ आधारांग सूत्र-द्वितीय भूप्तस्कन्ध 375. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जानें कि वहाँ कमलकन्द, पलाशकन्द, सरसों की बाल तथा अन्य इसीप्रकार का कच्चा कन्द है, जो शस्त्र परिणत नहीं हुआ है, ऐसे कन्द आदि को अप्रासुक जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे / 376. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ पिप्पली, पिप्पली का चूर्ण, मिचं या मिर्च का चूर्ण, अदरक या अदरक का चूर्ण तथा इसी प्रकार का अन्य कोई पदार्थ या चूर्ण, जो कच्चा (हरा) और अशस्त्र-परिणत है, उसे अप्रासुक जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। 377. गृहस्थ के यहाँ आहार के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि वहाँ प्रलम्ब-फल के ये प्रकार जाने-जैसे कि-आम्र-प्रलम्ब-फल, अम्बाडगफल, ताल-प्रलम्ब-फल, वल्लीप्रलम्ब-फल, सरभि-प्रलम्ब-फल, शल्यकी का प्रलम्ब-फल, तथा इसी प्रकार का अन्य प्रलम्ब फल का प्रकार, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, उसे अप्रासक और अनेषणीय समझ कर मिलने पर भी ग्रहण न करे।। 378. गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी अगर वहाँ प्रवाल के ये प्रकार जाने-जैसे कि-पीपल का प्रवाल, बड़ का प्रवाल, पाकड़ वृक्ष का प्रवाल, नन्दी वृक्ष का प्रवाल, शल्यकी (सल्लकी) वृक्ष का प्रवाल, या अन्य उस प्रकार का कोई प्रवाल है, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो ऐसे प्रवाल को अप्रासक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। 376. गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि कोमल फल के ये प्रकार जाने-जैसे कि शलाद फल, कपित्थ (कैथ) का कोमल फल, अनार का कोमल फल, बेल (बिल्व) का कोमल फल अथवा अन्य इसी प्रकार का कोमल (शलादु) फल. जो कि कच्चा और अशस्त्र परिणत है, तो उसे अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर प्राप्त होने पर भी न ले। 380. गहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साध या साध्वी यदि (हरी वनस्पति के) मन्थु चूर्ण के ये प्रकार जाने, जैसे कि -उदुम्बर (गुल्लर) का मंथु (चूर्ण), बड़ का चूर्ण, पाकड़ का चूर्ण, पीपल का चूर्ण अथवा अन्य इसी प्रकार का चूर्ण है, जो कि अभी कच्चा व थोड़ा पीसा हुआ है, और जिसका योनि-बीज विध्वस्त नहीं हुआ है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जान कर प्राप्त होने पर भी न ले। 381. गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जान जाए कि वहाँ कच्ची (अधपकी) भाजी है, सड़ी हुई खली है. मधु, मद्य, घृत और मद्य के नीचे का कीट (कीचड़) बहुत पुराना है तो उन्हें ग्रहण न करे, क्योंकि उनमें प्राणी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें प्राणी जन्मते हैं, संवर्धित होते हैं, इनमें प्राणियों का ब्युत्क्रमण नहीं होता, ये प्राणी शस्त्र-परिणत नहीं होते, न ये प्राणी विध्वस्त होते हैं। 382. गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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