________________ आचारांग सूत्र---द्वितीय भू तस्कन्ध आहार में पानी में धनेरिया, चींटी, लट, मक्खी, फुआरे आदि जीव पड़े हों या सांप, बिच्छू आदि आहार के बर्तन के नीचे या ऊपर बैठे हों अथवा उस आहार पर चींटियां लगी हुई हों, मक्खियां बैठी भिनभिना रही हों, या अन्य कोई उड़ने वाला प्राणी उस आहार पर बैठा हो या मंडरा रहा हो तो ऐसी स्थिति में उस आहार को सचित्त प्रतिष्ठित माना जाता है, साधु के लिए वह ग्राह्य नहीं होता।' क्योंकि-अहिंसा महाव्रती साधु अपने आहार के लिए किसी भी जीव को जरा-सा भी कष्ट नहीं दे सकता / यही कारण है कि वह इतना सावधानीपूर्वक चलता है। इस सूत्र में शंकित, मक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संहृत, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, लिप्त और छर्दित, इन दस एषणा-दोषों का समावेश हो जाता है।' पानक एषण ___ 366. से भिक्खू वा 2 जाव समाणे से ज्जं पुण पाणगजायं जाणेज्जा, तंजहा-उस्सेइमं वा संसेइमं वा चाउलोदगं वा अण्णतरं वा तहप्पगारं पाणगजातं अधुणाधोतं अणंबिलं अव्वोक्कत अपरिणतं अविद्धत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा / अह पुणवं जाणेज्जा चिरा धोतं अंबिलं वक्तं परिणतं विद्धत्थं फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। 1. तुलना करें :--- असणं पाणगंवा वि, खाइमं साइमं तहा। पुप्फेसु होज्ज उम्मीसं, बीएसु हरिएसु वा // 57 // तं भवे भत्तपाणं तु. संजयाण अकप्पियं / बेतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पई तारिसं // 58 // असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। उदगम्मि होज्ज निक्खित्त, उत्तिगंपणगेसु वा // 56 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पई तारिसं // 60 / / असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। तेउम्मि होज्ज निक्खित तं च संघट्टिया दए। 61 // तं भवे भत्तपाणं तु; संजयाण अकप्पियं / दें तयं पडिआइक्खे, न मे कम्पई तारिसं // 2 // एवं उस्सक्किया ओसक्किया, उज्जालिया पज्जालिया निश्वाविया। उस्सिचिया निस्सिचिया, ओवत्तिया ओयरिया दए // 63 // तं भवे भत्तपाणं तु. संजयाण अकप्पियं / दंतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 64 // होज्ज कहें सिलं वा वि, इट्ठालं वा वि एगया। ठवियं संकमट्ठाए, तं च होज्ज चलाचलं // 65 // --दसर्व० ५/उ० 1 2. आचारांग टीका पत्र 345 के आधार पर। 3. तुलना कीजिए-दशवकालिक अ०५, उ०१, गा० 106 / 4. 'अबोक्कंतं' के स्थान पर अम्बरकत पाठ मानकर चूर्णिकार ने अर्थ किया है--सबेयणं-सचेतन / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org