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________________ प्रथम अध्ययन : छठा उद्देशक : सूत्र 358-356 _ 'गापिंडोलग' आदि पदों के अर्थ ?.---ग्रामपिण्डोलक= जो ग्राम के पिण्ड पर निर्वाह करता है।' संसोए:-सामने दिखायी दे, इस तरह से, सपडिदुवार=निकलने-प्रवेश करने के द्वार पर। अणावायमसलोए-जहाँ कोई आता-जाता न हो, जहाँ कोई देख न रहा हो। सव्वजणाए णिसट्ट = सब जनों के लिए (साझा-भोजन) दिया है। परिभाएह =विभाजन-करो। उवेहेज्जा कल्पना करे, सोचे। अवियाई = (गृहस्थ ने) अर्पित किया है। खद्ध ख जल्दी-जल्दी या प्रचुर मात्रा में / डाय-शाक, व्यञ्जन / ऊसढं =उच्छित-वर्णादिगुणों से युक्त सुन्दर। रसिय सरस, अमुच्छिए आदि चार पद एकार्थक हैं; किन्तु क्रमशः यों हैं अमूच्छित, अगृध्द, निरपेक्ष और अनासक्त / बहुसममेव=प्रायः सममात्रा में, वेरातिया एकत्र व्यवस्थित होकर, ओभासेज्जदाता से याचना करे, णिवट्टिते निपटा देने पर-निवृत्त होने पर।' 358. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं / सू० 358. यही उस भिक्ष अथवा भिक्षणी के लिए ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप आदि के आचार की समग्रता - सम्पूर्णता है।' // पंचम उद्देशक समाप्त / छट्ठो उद्देसओ ___छठा उद्देशक कुक्कुटादि प्राणी होने पर अन्य मार्ग-गवेषणा 356. से भिक्खू वा 2 जाव' समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा, रसेसिणो बहवे पाणा घासेसणाए संथडे संणिवतिए पेहाए, तंजहाकुक्कुड जातियं वा सूयरजातियं वा, अग्गपिंडसि वा वायसा संथडा संणिवतिया पेहाए, सति परक्कमे संजया णो उज्जयं गच्छेज्जा। 356. वह भिक्षु या भिक्षुणी आहार के निमित्त जा रहे हों, उस समय मार्ग में यह जाने कि रसान्वेषी बहुत-से प्राणी आहार के लिए झुण्ड के झुण्ड एकत्रित होकर (किसी पदार्थ 1. (क) पिण्डोलग-पर-दत्त आहार से जीवन-निर्वाह करने वाला भिखारी (-उत्त० बृहृवृत्ति पत्र 250) (ख) कृपणं वा पिण्डोलक—दशव हारि० टीका पृ० 184 / 2. टीका पत्र 336-340 / 3. इसका विवेचन प्रथम उद्देशक के सू० 334 को समान समझना चाहिए / 4. यहाँ जाव' शब्द सु. 324 में पठित समग्र पाठ का सूचक है / 5. संजया के स्थान पर पूर्वापरस्त्रों में संजयामेव' शब्द मिलता है, तथापि संयत का सम्बोधन या संयत-सम्यगुपयुक्त शब्द का वाचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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