________________ पढमा चूला 'पिंडेषणा' पढमं अज्झयणं पढमो उद्देसओ प्रथम चूलाः पिडषणा–प्रथम अध्ययन : प्रथम उद्देशक सचित्त-संसक्त आहारषणा 324. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पाणेहि वा पणएहि वा बीएहि वा हरिएहि वा संसत्तं उम्मिस्सं सीओदएण वा ओसित रयसा वा परिघासिय, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परहत्यसि वा परपासि वा अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे वि संते णो पडिगाहेज्जा। से य आहश्च पडिगाहिए सिया, से तमादाय एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अह आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिते अप्पोसे अप्पुदए अप्पुत्तिग-पणग-वगमट्टिय-मक्कडासंताणए विगिचय विगिचय उम्मिस्सं विसोहिय विसोहिय ततो संजयामेव मुंजेज वा पिएज्ज वा। नं च णो संचाएज्जा भोत्तए वा पातए वा से समादाय एगंतमवक्कमेजा, 2 [ता] अहे झामथंडिल्लसि या अहिरासिसि वा किट्टरासिसि वा तुसरासिसि वा गोमयरासिसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय ततो संजयामेव परिठ्ठवेज्जा। 324. कोई भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा में आहार-प्राप्ति के उद्देश्य से गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होकर (आहार योग्य पदार्थों का अवलोकन करते हुए) यह जाने कि यह अशन, पान, खाद्य तथा स्वाद्य (आहार) रसज आदि प्राणियों (कृमियों) से, काई-फफुदी से, गेहूँ आदि के बीजों से, हरे अंकुर आदि से संसक्त है, मिश्रित है, सचित्त जल से गीला है तथा सचित्त मिट्टी से सना हुआ है। यदि इस प्रकार का (अशुद्ध) अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य पर-(दाता) के हाथ 1. चूर्णिकार ने 'आहञ्च' और 'सिया' इन दो पदों को लेकर चतुभंगी सूचित की है- “आधच्च= सहसा, सिता कदाति, अणाभोगदिन्नं, अणाभोगपडिच्छियं।"-भावार्थ यह है-(१) सहसा ग्रहण कर लेने पर; (2) कदाचित् ग्रहण करले तो, (3) बिना उपयोग के दिया गया हो, (4) बिना उपयोग के ग्रहण कर लिया हो।" 2. 'अपआदि शब्दों का अर्थ चणिकार ने किया है..."अंडगा पाणा जत्थ पत्थि, हरिता दगं उस्सा वा जहिं पत्थि / " अर्थात्-जहाँ अंडे, प्राणी नहीं हों, जहाँ हरियाली, सचित्त पानी या ओस नहीं हो। 3. यहाँ 2' के अंक के बदले में क्त्वा-प्रत्ययान्त 'अवक्कमित्ता' पद समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org