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________________ आचारांग सूत्र [आचार चूला] (प्रथम चूला) पिडेषणा-प्रथम अध्ययन प्राथमिक र आचारांग सूत्र का यह द्वितीय श्रु तस्कन्ध है / इसका अपर नाम 'आचाराम' या आचार चूला भी है। - प्रथम श्रु तस्कन्ध में जो ब्रह्मचर्याध्ययन प्रतिपादित हैं, उनमें आचार सम्बन्धी समग्र बातें नहीं बताई गई हैं, जो कुछ बताई गई हैं, वे बहुत ही संक्षेप में। अतः नहीं कही हई बातों का कथन और संक्षेप में कही हुई बातों का विस्तारपूर्वक कथन करने के लिए उसकी अग्रभूत चार चूलाएं उक्त और अनुक्त अर्थ की संग्राहिका बताई गई हैं।' * आचारान में 'अग्र' शब्द के अनेक भेद-प्रभेद करके बताया है कि यहाँ 'अग्र' शब्द 'उप काराग्र' के अर्थ में ग्रहण करना चाहिए। अर्थात् प्रथम श्रुतस्कन्ध के नव अध्ययनों में जो विषय संक्षिप्त में कहे हैं, यहाँ उनका अर्थ विस्तार से किया गया है, तथा जो विषय अनुक्त नहीं कहे गए हैं, उनका यहाँ निरूपण भी है। 5 प्रथम चला में पिंडषणा से अवग्रहप्रतिमा तक के सात अध्ययन हैं। इसी प्रकार स्थान सप्तिका आदि (8 से 14) सात अध्ययन की द्वितीय चूला है। तृतीय चूला में भावना अध्ययन (15 वाँ) एवं चतुर्थ चूला में विमुक्ति अध्ययन (16 वौ) परिगणित है।' चूला, चूडा या चोटी शीर्ष स्थान को कहते हैं / आचार सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण विषयों का निर्देश होने से इसे 'चूला' संज्ञा दी गयी है। * आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन का नाम 'पिण्डषणा' है। + पिण्ड का अर्थ है-अनेक पदार्थों का संघात करना, एकत्रित करना। संयम आदि भावपिण्ड है तथा उसके उपकारक आहार आदि द्रव्यपिण्ड। . 1. नियुक्ति तथा चूर्णि के अनुसार आचारांग के साथ पांच चूलाएं संयुक्त थीं। प्रथम चार चूलाओं की स्थापना के रूप में द्वितीय श्रुतस्कन्ध है, तथा पाँचवी चूला 'निशीथ-अध्ययन' के रूप में स्थापित की गई है। जैसेहवइ य स पंच चूलो-(नियुक्ति गाथा 11) तस्स पंच चूलाओ,"एकारस पिउषणाओ जावोगह पडिमा पढ़मा चूला "णिसीह पंचमा चूला-चूणि 2. (क) नियुक्ति गा० 4 / (ख) आचा० टीका पत्रांक 318, 3. (क) नियुक्ति गा० 11 से 16 / (ख) आचा० टीका पत्रांक 320 / .. .: 4. अभि० राजेन्द्र भाग 5 पृ० 616 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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