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________________ नवम अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 293-306 329 डण्डे से या मुक्के से अथवा भाले आदि शस्त्र से या फिर मिट्टी के ढेले या खप्पर (ठोकरे) से मारते, फिर 'मारो-मारो' कहकर होहल्ला मचाते / / 89 / / / / 303. उन अनार्यों ने पहले एक बार ध्यानस्थ खड़े भगवान के शरीर को पकड़कर मांस काट लिया था। उन्हें (प्रतिकूल) परीषहों से पीड़ित करते थे, कभीकभी उन पर धूल फेंकते थे !(90 // 304. कुछ दुष्ट लोग ध्यानस्थ भगवान को ऊँचा उठाकर नीचे गिरा देते थे, कुछ लोग आसन से (धक्का मारकर) दूर धकेल देते थे, किन्तु भगवान शरीर का व्युत्सर्ग किए हुए परीषह सहन के लिए प्रणबद्ध, कष्टसहिष्णु दुःखप्रतीकार की प्रतिज्ञा से मुक्त थे / अतएव वे इन परीषहों-उपसर्गों से विचलित नहीं होते थे // 91 // __305. जैसे कवच पहना हुआ योद्धा युद्ध के मोर्चे पर शस्त्रों से विद्ध होने पर भी विचलित नहीं होता, वैसे ही संवर का कवच पहने हुए भगवान महावीर लाढादि देश में परीषह-सेना से पीड़ित होने पर भी कठोरतम कष्टों का सामना करते हुए- मेरुपर्वत की तरह ध्यान में निश्चल रहकर मोक्षपथ में पराक्रम करते थे / / 92 // 306. (स्थान और आसन के सम्बन्ध में) किसी प्रकार की प्रतिज्ञा से मुक्त मतिमान, महामाहन भगवान महावीर ने इस (पूर्वोक्त) विधि का अनेक बार आचरण किया; उनके द्वारा प्राचरित एवं उपदिष्ट विधि का अन्य साधक भी इसी प्रकार पाचरण करते हैं / / 93 / / -ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-लाढदेश में बिहार क्यों ?--भगवान ने दीक्षा लेते ही अपने शरीर का व्यूत्सर्ग कर दिया था। इसलिए वे व्युत्सर्जन की कसौटी पर अपने शरीर को कसने के लिए लाढ़ देश जैसे दुर्गम और दुश्चर क्षेत्र में गए। आवश्यकणि में बताया गया है कि भगवान यह चिन्तन करते हैं कि 'अभी मुझे बहुत से कर्मों की निर्जरा करनी है, इसलिए लाढ़ देश में जाऊँ। वहाँ अनार्य लोग है, वहाँ कर्मनिर्जरा के निमित्त अधिक उपलब्ध होंगे।' मन में इस प्रकार का विचार करके भगवान लाढ़ देश के लिए चल पड़े और एक दिन लाढ़ देश में प्रविष्ट हो गए / इसीलिए यहाँ कहा गया-'अह दुच्चरलाढमचारी ..2 लाढ देश कहाँ और दुर्गम-दुश्चर क्यों ? -- ऐतिहासिक खोजों के आधार पर पता चला है कि वर्तमान में वीरभूम, सिंहभूम एवं मानभूम (धनबाद आदि) जिले तथा पश्चिम बंगाल के तमलक, मिदनापुर, हुगली तथा बर्दवान जिले का हिस्सा लाढ़ देश माना जाता था। ___लाढ़ देश पर्वतों, झाड़ियों और घने जंगलों के कारण बहुत दुर्गम था, उस प्रदेश में घास बहुत होती थी। चारों ओर पर्वतों से घिरा होने के कारण वहाँ सर्दी और गर्मी दोनों 1. "तओ ण समले भगवं महावीरे "एतारूवं अभिग्गा अभिगिण्हति बारसवासाई वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा समुप्पजति, तंजहा" अहियासइस्सामि / " - प्राचा० सूत्र 769 3. (क) प्राचा० शीला० टीका पत्रांक 310 / (ख) प्रावश्यक चूणि पूर्व भाग पृ० 290 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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