________________ 24. माचारांग सूत्र-प्रथम मुतत्कन्छ भी भाव-विमोक्ष के कारण होने से भावविमोक्ष हैं / ' उनके अभ्यास के लिए साधक के द्वारा विविध बाह्याभ्यन्तर तपों द्वारा शरीर और कषाय की संलेखना करना, उन्हें कृश करना भी भाव-विमोक्ष है। विमोक्ष अध्ययन के 8 उद्देशक हैं। जिनमें पूर्वोक्त भाव-विमोक्ष के परिप्रेक्ष्य में विविध पहलुओं से विमोक्ष का निरूपण है। प्रथम उद्देशक में असमनोज्ञ-विमोक्ष का, द्वितीय उद्देशक में अकल्पनीय विमोक्ष का तथा तृतीय उद्देशक में इन्द्रिय-विषयों से विमोक्ष का वर्णन है। चतुर्थ उद्देशक से अष्टस उद्देशक तक एक या दूसरे प्रकार से उपकरण और शरीर के परित्यागरूप विमोक्ष का. प्रतिपादन है। जैसे कि चतुर्थ में वैहानस और गद्धपृष्ठ नामक मरण का, पंचम में ग्लानता एवं भक्तपरिज्ञा का, छठे में एकत्वभावना और इंगितमरण का, सप्तम में भिक्षु प्रतिमाओं तथा पादपोपगमन का एवं अष्टम उद्देशक में द्वादश वर्षीय संलेखनाक्रम एवं भक्त-परिज्ञा, इंगितमरण एवं पादपोपगमन के स्वरूप का प्रतिपादन है। यह अध्ययन सूत्र 199 से प्रारम्भ होकर सूत्र 253 पर समाप्त होता है। 1. प्राचा० नियुक्ति गा० 261, 262, प्राचा० शीला टोका पत्रांक 261 / 2. आचा० नियुक्ति गा० 253, 254, 255, 256, 257 / प्राचा. शीला दीको पत्रोंक 259 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org