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________________ कालिक और उत्कालिक इन पागम साहित्य को शाखा व प्रशाखाओं का भी शन्दचित्र प्रस्तुत किया हैं।' उसके पश्चात्वर्ती साहित्य में अंग-उपांग-मूल और छेद के रूप में प्रागमों का विभाग किया गया है। विशेष जिज्ञासुत्रों को मेरे द्वारा लिखित 'जैन आगम साहित्यः मनन और मीमांसा' ग्रन्थ अवलोकनार्थ नम्र सूचना है। ___ चाहे श्वेताम्बर परम्परा हो और चाहे दिगम्बर परम्परा हो, अंगप्रविष्ट अागम साहित्य में द्वादशांगी का निरूपण किया है / उनके नाम इस प्रकार हैं१. प्राचारांग 7. उपासकदशा 2. सूत्रकृतांग 8. अन्तकृद्दशा 3. स्थानांग 9. अनुत्तरोपपातिकदशा 4. समवायांम 10. प्रश्नव्याकरण 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति 11. विपाक 6. ज्ञाता धर्मकथा 12. दृष्टिवाद दिगम्बर परम्परा की दृष्टि से अंगसाहित्य विच्छिन्न हो चुका है, केवल दृष्टिवाद का कुछ अंम अवशेष है जो षट्खण्डागम के रूप में आज भी विद्यमान है। पर श्वेताम्बर दृष्टि से पूर्व साहित्य विच्छिन्न हो गया है, जो दृष्टिवाद का एक विभाग था। पूर्व साहित्य में से नियूंढ पागम प्राज भी विद्यमान हैं / जैसे प्राचारचूला२, दशवकालिक 3, निशीथ, दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार, उत्तराध्ययन का परीषह अध्ययन प्रादि / दशवकालिक के निर्यहक प्राचार्य शय्यम्भव है और शेष आगमों के निर्वहक भद्रबाहु स्वामी हैं जो श्रुतकेवली के रूप में विश्रुत हैं। प्रागम विच्छिन्न होने का मूल कारण भगवान् महावीर के पश्चात् होने वाले दुष्काल आदि रहे हैं, क्योंकि उस समय पागम लेखन की परम्परा नहीं थी। आगम लेखन को दोषरूप माना जाता था। वर्तमान में जो आगम पुस्तक रूप में उपलब्ध हो रहे हैं, उसका सम्पूर्ण श्रेय देवद्धिगणी क्षमाश्रमण को है, जिनका समय वीर निर्वाण की दशवीं शताब्दी है। आचारांग का महत्त्व __अंग साहित्य में आचारांग का सर्वप्रथम स्थान है। क्योंकि संघ-व्यवस्था में सर्वप्रथम प्राचार की व्यवस्था प्रावश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। श्रमण-जीवन की साधना का जो मार्मिक विवेचन प्राचारांग में उपलब्ध होता है, वैसा अन्यत्र प्राप्त नहीं होता। प्राचारांग नियुक्ति में प्राचार्य भद्रबाहु ने स्पष्ट कहा है-मुक्ति का अव्याबाध सुख सम्प्राप्त करने का मूल प्राचार है। अंगों का सारतत्त्व प्राचार में रहा हुआ है। मोक्ष का साक्षात् कारण होने से प्राचार सम्पूर्ण प्रवचन की प्राधारशिला है। एक जिज्ञासा प्रस्तुत की गई, अंग सूत्रों का सार प्राचार है तो प्राचार का सार क्या है ? प्राचार्य ने समाधान की भाषा में कहा---प्राचार का सार अनुयोगार्थ है, अनुयोग का सार प्ररूपणा है। प्ररूपणा का 1. नन्दीसूत्र सूत्र-९ से 119 / 2. प्राचारांग वृत्ति-२९० / 3. दशवकालिक नियुक्ति गाथा 16 से 18 / 4. (क) निशीथभाष्य-६५०० (ख) पंचकल्पचूर्णी पत्र-१ / 5. दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति गाथा- 1 पत्र-१ / 6. पंचकल्पभाष्य गाथा-११ / 7. दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति गाथा-१ पत्र-१ / 8. उत्तराध्ययन नियुक्ति गाथा 69 / Jain Education International [23] For Private & Pelsondl Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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