________________ 120 आचारांग सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध se. द्वितीय उद्देशक में विभिन्न धर्म-प्रवादियों (प्रवक्तायों) के प्रवादों में युक्त अयुक्त की विचारणा होने से धर्म-परीक्षा का निरूपण है / . तृतीय उद्देशक में निर्दोष-निरवद्य तप का वर्णन होने से उसका नाम सम्यक् तप है। Ne चतुर्थ उद्देशक में सम्यक् चारित्र से सम्बन्धित निरूपण है। इस प्रकार चार उद्देशकों में क्रमश: सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक तप और सम्यक चारित्र, इन चारों भाव सम्यकों का भलीभांति विश्लेषण है।' st नियुक्तिकार ने भाव सम्यक के तीन ही प्रकार बताये हैं-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र / इनमें दर्शन और चारित्र के क्रमशः तीन-तीन भेद हैं-(१) औपशमिक, (2) क्षायोपशमिक और (3) क्षायिक / सम्यग्ज्ञान के दो भेद हैं-(१) क्षायोपशमिक ज्ञान और (2) क्षायिक ज्ञान / ' re. प्रस्तुत चतुर्थ अध्ययन के चार उद्देशक सूत्र 132 से प्रारम्भ होकर सूत्र 146 पर ... समाप्त होते हैं। 1. आचा० नियुक्ति गा० 215, 216 / 2. (क) प्राचा० नियुक्ति गा० 119, तत्त्वार्थ सूत्र 2 / 3 / (ख) अांचा० शीला दीका पत्रांक 159 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org