________________ 86 आचारांग सूत्र-प्रथम श्रु तस्कन्ध विधियों को जानता है, वही लोकाचार या जगत के भोगाभिलाषी स्वभाव को अथवा 'विश्व की समस्त प्रात्मा एक समान हैं' - इस समत्त्व-सूत्र को जानकर, हिंसा, मिथ्यात्व अज्ञानादि शस्त्रों से दूर रहता है। यहाँ 'सुप्त' शब्द भावसुप्त अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। भावसुप्त वह होता है, जो मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति, प्रमाद अादि के कारण हिंसादि में सदा प्रवृत्त रहता है।। जो दीर्घ संयम के अाधारभूत शरीर को टिकाने के लिए प्राचार्य-गुरु आदि की आज्ञा से द्रव्य से सोते; निद्राधीन होते हुए भी आत्म-स्वरूप में जागृत रहते हैं, वे धर्म की दृष्टि से जागृत हैं। अथवा भाव से जागृत साधक, निद्रा-प्रमादवश सुषुप्त होते हुए भी भावसुप्त नहीं कहलाता / यहाँ भावसुप्त एवं भावजागृत-दोनों अवस्थाएँ धर्म की अपेक्षा से कही गयी हैं।' अज्ञान दुःख का कारण है, इसलिए यहाँ 'अज्ञान' के स्थान पर 'दुःख' शब्द का प्रयोग किया गया है। चर्णिकार ने दुःख का अर्थ 'कर्म' किया है। उन्होंने बताया है कि कर्म दुःख का कारण है। अज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म ग्रादि से सम्बन्धित भी है, इसलिए प्रसंगवश दुःख का अर्थ यहाँ अज्ञान भी किया जा सकता है / 'समय' शब्द यहाँ प्रसंगवश दो अर्थों को अभिव्यक्त करता है-अाधार और समता / लोक-प्रचलित आचार या रीति-रिवाज साधक को जानना आवश्यक है। संसार के प्राण भोगाभिलाषी होने के कारण प्राणि-विघातक एवं कषायहेनुक लोकाचार के कारण अनेक कर्मों का संचय करके नरकादि यातना-स्थानों में उत्पन्न होते हैं। कदाचित् कर्मफल भोगने के बाद वे धर्मप्राप्ति के कारण मनुष्य-जन्म, प्रार्य-क्षेत्र आदि में पैदा होते हैं, लेकिन फिर महामोह, अज्ञानादि अन्धकार के वश प्रशुभकर्म का उपार्जन करके अधोगतियों में जाते हैं। संसार के जन्म-मरण के चक्र से नहीं निकल पाते। यह है-लोकाचार। इस लोकाचार (समय) को जानकर हिंसा से उपरत होना चाहिए / इसी प्रकार लोक (ससस्त जीव सम्ह) में शत्रु-मित्रादि के प्रति अथवा समस्त प्रात्मानों के प्रति समता (समभाव-आत्मौपम्य दृष्टि) जान कर हिंसा आदि शस्त्रों से विरत होना चाहिए। 1. भगवती सूत्र में जयंती श्राविका और भगवान् महावीर का सुप्त और जागृत के विषय में एक संवाद आता है / जयन्ती श्राविका प्रभु से पूछती है--"भंते ! सुप्त अच्छे या जागृत ?" भगवान् ने धर्मदृष्टि से अनेकान्तगली में उत्तर दिया-"जो धनिष्ठ हैं, उनका जागृत रहना श्रेयस्कर है और जो अमिष्ठ हैं, पापी है, उनका सुप्त (सोये) रहना अच्छा / " यहाँ सुप्त और जागृत द्रव्यदृष्टि से नहीं / -शतक 120 उ०२ 2. देखिये 'समय' शब्द के विभिन्न अर्थ अमरकोष में "समया शपथाचारकाल-सिद्धान्त-सविदः" समय के अर्थ हैं-शपथ, प्राचार, काल, सिद्धान्त और संविद् (प्रतिज्ञा या शर्त) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org