________________ 84 आचारांग सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध [ प्रथम उद्देशक में धर्मदृष्टि से जागत और सूप्त की चर्चा की है। विशेषतः अप्रमाद और प्रमाद का, अनासक्ति और आसक्ति का विवेक बतलाया गया है / Ne द्वितीय उद्देशक में सुख-दु:ख के कारणों का तत्त्वबोध निरूपित किया है। - तृतीय उद्देशक में साधक का कर्तव्यबोध निर्दिष्ट है। * चौथे उद्देशक में कषायादि से विरति का उपदेश है। के इस प्रकार चारों उद्देशकों में आत्मा के परिणामों में होने वाली भाव-शीतलता और भाव-उष्णता को लेकर विविध विषयों की चर्चा की गई है।' - निष्कर्ष यह है कि तृतीय अध्ययन के चार उद्देश कों एवं छब्बीस सूत्रों में सहिष्णुता और अप्रमत्तता का स्वर गूज रहा है। * सूत्र संख्या 106 से प्रारंभ होकर सूत्र 131 पर तृतीय अध्ययन समाप्त होता है / 1. आचा० नियुक्ति गाथा 198, 199 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org