________________ में चिन्तन प्रारम्भ किया था। सुदीर्घ चिन्तन के पश्चात गतवर्ष' दृढ़ निर्णय करके प्रागम-बत्तीसी का सम्पादन-विवेचन कार्य प्रारम्भ कर दिया और अब पाठकों के हाथों में प्रागम ग्रन्थ, क्रमशः पहुंच रहे हैं। इसकी मुझे अत्यधिक प्रसन्नता है। आगम-सम्पादन का यह ऐतिहासिक कार्य पूज्य गुरुदेव की पुण्य स्मृति में प्रायोजित किया गया है। आज उनका पुण्य स्मरण मेरे मन को उल्लसित कर रहा है। साथ ही मेरे वन्दनीय गुरु-भ्राता पूज्य स्वामी श्री हजारीमलजी महाराज की प्रेरणाएं, उनकी आगम-भक्ति पागम सम्बन्धी तलस्पर्शी ज्ञान मेरा सम्बल बना है। अतः मैं उन दोनों स्वर्गीय प्रात्माओं की पुण्य स्मृति में विभोर हूँ। ___ शासनसेवी स्वामीजी श्री वृजलालजी महाराज का मार्गदर्शन, उत्साह-संवर्द्धन, सेवाभावी शिष्य मुनि विनयकुमार व महेन्द्र मुनि का साहचर्य बल, सेवा-सहयोग तथा महासती श्री कानकुंवरजी, महासती श्री झणकारकुंवरजी, परम विदुषी साध्वी श्री उमराव कुंवरजी 'अर्चना' की विनम्र प्रेरणाएँ मुझे सदा प्रोत्साहित तथा कार्यनिष्ठ बनाए रखने में सहायक रही हैं। मुझे दृढ़ विश्वास है कि प्रागम-वाणी के सम्पादन का यह सुदीर्घ प्रयत्नसाध्य कार्य सम्पन्न करने में मुझे सभी सहयोगियों, श्रावकों; व विद्वानों का पूर्ण सहकार मिलता रहेगा और मैं अपने लक्ष्य तक पहुंचने में गतिशील बना रहेगा। इसी आशा के साथ.... -मुनि मिश्रीलाल 'मधुकर' 1. वि० सं० 2036 वैशाख शुक्ला 10 महावीर-कैवल्यदिवस / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org