SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 503
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५२ अनुयोगद्वारसूत्र पर एक विशाल तालाब बनवाया और उसके किनारे षड् ऋतुओं के फल-फूलों वाले वृक्ष लगवा दिये। इसके बाद किसी समय पुनः राजा अमात्य सहित उसी रास्ते पर घूमने निकला। वृक्ष-समूह से सुशोभित जलाशय को देखकर राजा ने अमात्य से पूछा—यह रमणीक जलाशय किसने बनवाया है ? अमात्य ने उत्तर दिया—महाराज ! आपने ही तो बनवाया है। अमात्य का उत्तर सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ। वह बोला—सचमुच ही यह जलाशय मैंने बनवाया | है ? जलाशय बनवाने का कोई आदेश मैंने दिया हो, याद नहीं है। अमात्य ने पूर्व समय की घटना की याद दिलाते हुए बताया-महाराज ! इस स्थान पर बहुत समय तक मूत्र को बिना सूखा देख कर आपने यहां जलाशय बनवाने का विचार किया था। आपके मनोभावों को जानकर मैंने यह जलाशय बनवा दिया है। ____ अपने अमात्य की दूसरे के मनोभावों को परखने की प्रतिभा देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसकी प्रशंसा करने लगा। (यह तीनों अप्रशस्त भावोपक्रम के दृष्टान्त हैं।)
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy