________________
प्रमाणाधिकारनिरूपण
भावप्रधान हैं। इसलिए ये भाव प्रस्थक को—प्रस्थक के उपयोग को प्रस्थक मानते हैं और उपयोग जीव का लक्षण है। इसलिए जीव का लक्षण रूप उपयोग जब प्रस्थक को विषय करता है, तब वह उस रूप में परिणत हो जाता है, जिससे प्रस्थक के उपयोग को प्रस्थक मान लिया जाता है। अथवा प्रस्थक के बनाने वाले व्यक्ति के जिस उपयोग के द्वारा प्रस्थक निष्पन्न होता है, उस उपयोग में वर्तमान वह कर्ता प्रस्थक कहा जाता है। क्योंकि कर्ता में जब तक प्रस्थक बनाने का उपयोग नहीं होगा, तब तक वह प्रस्थक नहीं बना सकेगा। इसलिए वह कर्ता भी उस प्रस्थक को निष्पन्न करने वाले उपयोग से अनन्य होने के कारण प्रस्थक कहा जाता है। वसतिदृष्टान्त द्वारा नयनिरूपण
४७५. से किं तं वसहिदिटुंतेणं ?
वसहिदिटुंतेणं से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वदिजा, कहिं भवं वससि ? तत्थ अविसुद्धो णेगमो भणइ–लोगे वसामि ।
लोगे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—उड्डलोए अधोलोए तिरियलोए, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणइ तिरियलोए वसामि ।
तिरियलोए जंबुद्दीवादीया सयंभुरमणपजवसाणा असंखेजा दीव-समुद्दा पण्णत्ता, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणति—जंबुद्दीवे वसामि ।
जंबुद्दीवे दस खेत्ता पण्णत्ता, तं जहा—भरहे एरवए हेमवए एरण्णवए हरिवस्से रम्मगवस्से देवकुरा उत्तरकुरा पुव्वविदेहे अवरविदेहे, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणति भरहे वसामि ।
भरहे वासे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–दाहिणड्डभरहे य उत्तरड्डभरहे य, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणति-दाहिणड्डभरहे वसामि ।
दाहिणड्डभरहे अणेगाइं गाम-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणा-ऽऽगर-संवाहसण्णिवेसाइं, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणति—पाडलिपुत्ते वसामि ।
पाडलिपुत्ते अणेगाइं गिहाई, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणतिदेवदत्तस्स घरे वसामि ।
देवदत्तस्स घरे अणेगा कोट्ठगा, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणतिगब्भघरे वसामि । एवं विसुद्धस्स णेगमस्स वसमाणो वसति ।
एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स संथारसमारूढो वसति । उज्जुसुयस्स जेसु आगासपएसेसु ओगाढो तेसु वसइ । तिण्हं सद्दनयाणं आयभावे वसइ । से तं वसहिदिट्ठतेणं ।