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________________ २९८ अनुयोगद्वारसूत्र सम्मुच्छ पुवकोडी, चउरासीतिं भवे सहस्साई । तेवण्णा बायाला, बावत्तरिमेव पक्खीणं ॥ १११॥ गब्भम्मि पुव्वकोडी, तिण्णि यपलिओवमाइं परमाउं । उर-भुयग पुव्वकोडी, पलिउवमासंखभागो य ॥ ११२॥ [३८७-५] पूर्वोक्त कथन की संग्रहणी गाथायें इस प्रकार हैं सम्मूछिम तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि वर्ष, स्थलचरचतुष्पद सम्मूछिमों की चौरासी हजार वर्ष, उरपरिसों की त्रेपन हजार वर्ष, भुजपरिसॉं की बियालीस हजार वर्ष और पक्षी (खेचरों) की बहत्तर हजार वर्ष की है। १११ गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यंचों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि वर्ष, स्थलचरों की तीन पल्योपम, उरपरिसॉं और भुजपरिसॉं की पूर्वकोटि वर्ष और खेचरों की पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। ११२ विवेचनपूर्व में सप्रभेद पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति बताई गई है। उनमें से इन दो गाथाओं में सामान्य से उन्हीं की उत्कृष्ट स्थिति का उल्लेख किया है। इस पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की आयु-स्थिति के कथन के साथ तिर्यंचगति के समस्त जीवों की स्थिति का वर्णन पूर्ण हुआ। मनुष्यों की स्थिति ३८८. (१) मणुस्साणं भंते ! केवइकालं ठिई प० ? गो० ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई । [३८८-१ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों की स्थिति कितने काल की बताई है ? [३८८-१ उ.] आयुष्मन् ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही है। (२) सम्मुच्छिममणुस्साणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्को० अंतो० । [३८८-२] सम्मूछिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। (३) गब्भवक्कंतियमणुस्साणं जाव जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । अपजत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं जाव गो० ! जहं० अंतो० उक्कोसेणं अंतो० । पज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । [३८८-३] गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। अपर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यों की जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्र्मुहूर्त की ही जानना चाहिए। पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून तीन पल्योपम प्रमाण है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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