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अनुयोगद्वारसूत्र
भोगभूमिज मनुष्य और तिर्यंच तथा देव और नारक अपनी-अपनी आयु के छह मास शेष रहने पर परभव की आयु बांधते हैं तथा कर्मभूमिज मनुष्यों और तिर्यंचों के प्रायः अपनी आयु के त्रिभाग में परभव की आयु का बंध होता है।
इस प्रकार से आयुकर्म के बंध की विशेष स्थिति होने के कारण एवं बंध की अनिश्चितता के कारण आयुकर्म की स्थिति में उसका अबाधाकाल सम्मिलित नहीं किया जाता है, जिससे उसकी कर्मरूपतावस्थानलक्षणा स्थिति का निश्चित प्रमाण बताया जा सके, इसीलिए उसकी जो भी स्थिति कही जाती है वह शुद्ध स्थिति (भुज्यमान स्थिति) होती है। उसमें अबाधाकाल सम्मिलित नहीं रहता है। अतएव यहां जो नारक जीवों की आयुरूप स्थिति कही गई है तथा आगे के सूत्रों में तिर्यंच आदि जीवों की स्थिति कही जाएगी, वह अनुभवयोग्याभुज्यमान आयु की अपेक्षा कही जानना चाहिए।
__ अपर्याप्त अवस्था की आयुस्थिति का काल सर्वत्र अन्तर्मुहूर्त ही है। सामान्य स्थिति में से अपर्याप्त काल को कम कर देने पर जो स्थिति शेष रहती है, वह पर्याप्तकों की स्थिति जानना चाहिए।
देव, नारक और असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य, तिर्यंच करण की अपेक्षा ही अपर्याप्तक माने गये हैं, लब्धि की अपेक्षा नहीं। लब्धि की अपेक्षा तो ये सब पर्याप्तक ही होते हैं। इनके अतिरिक्त शेष जीव लब्धि से पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनों प्रकार के होते हैं।
___ यहां नारकों की भवधारणीय स्थिति का मान निरूपित किया गया है। अब भवनपति देवों की स्थिति का कथन किया जाता हैभवनपति देवों की स्थिति
३८४. (१) असुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवतिकालं ठिती प० ? गो०! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं । असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतिकालं ठिती प० ? गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाइं । [३८४-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों की कितने काल की स्थिति प्रतिपादन की गई है ? [३८४-१ उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक सागरोपम प्रमाण है। [प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल की कही है ? [उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट साढे चार पल्योपम की कही है।
(२) नागकुमाराणं जाव गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाई दोण्णि पलिओवमाइं।
नागकुमारीणं जाव गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्सइं, उक्कोसेणं देसूणं पलिओवमं ।
(३) एवं जहा णागकुमाराणं देवाणं देवीण य तहा जाव थणियकुमाराणं देवाणं देवीण य भाणियव्वं ।
[३८४-२, ३ प्र.] भगवन् ! नागकुमार देवों की स्थिति कितनी है ?