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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २८१ ३७६. केवतिया णं भंते ! दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नत्ता ? गो० ! जावइया णं अड्डाइज्जाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धारसमया एवतिया णं दीवसमुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता । से तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे । से तं उद्धारपलिओमे । [ ३७६ प्र.] भगवन् ! कियत्प्रमाण द्वीप समुद्र उद्धार प्रमाण से प्रतिपादन किये गये हैं ? [ ३७६ उ.] गौतम ! अढ़ाई उद्धार सूक्ष्म सागरोपम के उद्धार समयों के बराबर द्वीप समुद्र हैं । यही सूक्ष्म उद्धारपल्योपम का और साथ ही उद्धारपल्योपम का स्वरूप है। विवेचन — प्रस्तुत सूत्रों में सूक्ष्म उद्धार पल्योपम और सागरोपम का कालमान एवं उसका प्रयोजन बतलाया है 1 यद्यपि व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम के वर्णन से यह कतिपय अंशों में मिलता-जुलता है, लेकिन आंशिक भिन्नता भी है और वह इस प्रकार कि सूक्ष्म पल्योपम का प्रमाण निर्देश करने के लिए जो एक से सात दिन तक के बालाग्र लिए गए हैं, उनके ऐसे खंड किए जाएं जो निर्मल चक्षु से देखने योग्य वस्तु की अपेक्षा भी असंख्यातवें भाग हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यातगुण प्रमाण हों। उनको प्रत्येक समय निकालने पर जितना काल व्यतीत हो वह कालप्रमाण एक सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहलाता है और जब दस कोटाकोटी प्रमाण पल्य खाली हो जाएं तब एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम काल होता है। इसके प्रतिपादन करने का मुख्य प्रयोजन यह बतलाना है कि अढ़ाई उद्धारसागरोपमों अर्थात् पच्चीस सूक्ष्म उद्धारपल्योपमों में से बालाग्र खंडों को उद्धृत करने — निकालने में जितने समय लगते हैं, उतने द्वीप - समुद्र हैं । अद्धापल्योपम-सागरोपमनिरूपण ३७७. से किं तं अद्धापलिओवमे ? अद्धापलिओवमे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा— सुहुमे य वावहारिए य । [३७७ प्र.] भगवन् ! (पल्योपम प्रमाण के द्वितीय भेद) अद्धापल्योपम का क्या स्वरूप है ? [३७७ उ.] आयुष्मन् ! अद्धापल्योपम के दो भेद हैं-- १. सूक्ष्म अद्धापल्योपम और २. व्यावहारिक अद्धापल्योपम । ३७८. तत्थ णं जे से सहमे से ठप्पे । ३७९. तत्थ णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया जोयणं विक्खंभेणं, जोयणं उड्डुं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले एगाहिय- बेहिय-तेहिय जाव भरिये वालग्गकोडीणं । ते णं वालग्गा नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेजा । ततो णं वाससते वाससते गते एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवति, से तं • वावहारिए अद्धापलिओवमे । एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हविज्ज दसगुणिया । तं वावहारियस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ १०९ ॥
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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