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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २७५ पक्ष्म (रेशे) को असंख्यात समय में छेदन कर दे, यह स्वाभाविक है। इस प्रकार से समय का स्वरूपनिर्देश करने के बाद अब उसके समूह रूप कालविभागों का वर्णन करते हैं। समयसमूहनिष्पन्न कालविभाग ३६७. असंखेजाणं समयाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा आवलिय त्ति पवुच्चइ । संखेजाओ आवलियाओ ऊसासो । संखेजाओ आवलियाओ नीसासो । हट्ठस्स अणवगल्लस्स निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसास-नीसासे एस पाणु त्ति वुच्चति ॥ १०४॥ सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे । लवाणं. सत्तहत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए ॥ १०५॥ तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाणि तेहत्तरि च उस्सासा । एस मुहुत्तो भणिओ सव्वेहिं अणंतनाणीहिं ॥ १०६॥ . एतेणं मुहत्तपमाणेणं तीसं मुहत्ता अहोरत्ते, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उऊ, तिण्णि उऊ अयणं, दो अयणाई संवच्छरे, पंचसंवच्छरिए जुगे, वीसं जुगाई वाससयं, दस वाससताई वाससहस्सं, सयं वाससहस्साणं वाससतसहस्सं, चउरासोई वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीतिं पुव्वंगसतसहस्साइं से एगे पुव्वे, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं से एगे तुडियंगे, चउरासीइं तुडियंगसयसहस्साइं से एगे तुडिए, चउरासीइं तुडियसययसहस्साइं से एगे अडडंगे, चउरासीई अडडंगसयसहस्साई से एगे अडडे, चउरासीई अडडसयसहस्साइं से एगे अववंगे, चउरासीइं अववंगसयसहस्साइं से एगे अववे, चउरासीतिं अववसतसहस्साइं से एगे हूहुयंगे, चउरासीइं हूहुयंगसतसहस्साइं से एगे हूहुए, एवं उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे नलिणंगे नलिणे अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे अउयंगे अउए णउयंगे णउए पउयंगे पउए चूलियंगे चूलिया, चउरासीतिं चूलियासतसहस्साइं से एगे सीसपहेलियंगे, चउरासीतिं सीसपहेलियंगसतसहस्साइं सा एगा सीसपहेलिया । एताव ताव गणिए, एयावए चेव गणियस्स विसए, अतो परं ओवमिए । [३६७] असंख्यात समयों के समुदाय समिति के संयोग से (असंख्यात समयों के समुदाय रूप संयोग से) एक आवलिका निष्पन्न होती है। संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छ्वास और संख्यात आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है। हृष्ट (प्रसन्न), वृद्धावस्था से रहित, (भूतकालिक एवं वर्तमानकालिक) व्याधि से रहित मनुष्य आदि के एक उच्छ्वास और निःश्वास के 'काल' को प्राण कहते हैं । १०४ कोष्ठगत वायु को बाहर निकालने को उच्छ्वास और बाहर की वायु को अन्दर कोष्ठ (कोठे) में ले जाने को नि:श्वास कहते हैं। एक उच्छ्वास में स्थूलगणना से २८८०/३७७३ सैकेण्ड होते हैं, उतने ही निःश्वास में भी।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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