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________________ [४९ ज्ञान के पांच प्रकार] होता। विवेचन सम्यक्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि के लक्षण इस प्रकार हैं (१) सम्यक्दृष्टि सम्यक्दृष्टि उसे कहते हैं जो आत्मा के, सत्य के तथा जिनप्ररूपित तत्त्व के सम्मुख हों। संक्षेप में, जिसको तत्त्वों पर सम्यक् श्रद्धा हो। (२) मिथ्यादृष्टि मिथ्यादृष्टि वह कहलाता है जिसकी जिन-प्ररूपित तत्त्वों पर श्रद्धा न हो और जो आत्मबोध एवं सत्य से विमुख हो। (३) मिश्रदृष्टि मिश्रदर्शनमोहनीय कर्म के उदय से जिसकी दृष्टि किसी पदार्थ का यथार्थ निर्णय अथवा निषेध करने में सक्षम न हो. जो सत्य को न ग्रहण कर सकता.हो. न त्याग कर सकता हो, और जो मोक्ष के उपाय एवं बंध के हेतुओं को समान मानता हो तथा जीवादि पदार्थों पर न श्रद्धा रखता हो और न ही अश्रद्धा करता हो, ऐसी मिश्रित श्रद्धा वाला जीव मिश्रदृष्टि कहलाता है। यथा—कोई व्यक्ति रंग की एकरूपता देखकर सोने व पीतल में भेद न कर पाता हो। . ३४ जइ सम्मद्दिट्ठि-पन्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, किं संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेन्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, असंजय-सम्मद्दिट्ठि-पजत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, संजयासंजय-सम्महिट्रि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभमग-गब्भवक्कंतिय-मणस्साणं? गोयमा! संजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज-वासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, णो असंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, णो संजया-संजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं। ३४–प्रश्न—यदि सम्यग्दृष्टि पर्याप्त, संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, तो क्या संयत–संयमी सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, अथवा असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है या संयतासंयत देशविरति सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है ? उत्तर—गौतम! संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है। असंयत और संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को नहीं होता। विवेचन—इन प्रश्नोत्तरों में संयत, असंयत और संयतासंयत जीवों के विषय में उल्लेख किया गया है। इनके लक्षण निम्न प्रकार हैं संयत—जो सर्वविरत हैं तथा चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय अथवा क्षयोपशम से जिन्हें ... सर्वविरति चारित्र की प्राप्ति हो गई है, वे संयत कहलाते हैं।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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