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________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [४७ वक्कंतिय-मणुस्साणं असंखेन्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं? गोयमा' संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, णो असंखेन्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं। ३१-प्रश्न—यदि कर्मभूमिज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है अथवा असंख्यात वर्ष की आयु प्राप्त कर्मभूमिज मनुष्यों को होता है ? उत्तर—गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है, असंख्यात वर्ष की आयुष्य प्राप्त कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को नहीं होता। विवेचन गर्भज मनुष्य संख्यात एवं असंख्यात वर्ष की आयु वाले, अर्थात् दो प्रकार के होते हैं। संख्यात वर्ष की आयु से यहाँ तात्पर्य है, जिसकी आयु कम से कम ९ वर्ष की और उत्कृष्ट करोड़ पूर्व की हो। इससे अधिक आयु वाला असंख्यात वर्ष की आयु प्राप्त कहलाता है तथा मनःपर्यवज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। ३२-जइ संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं ? अपज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं ? गोयमा! पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, णो अपज्जत्तग-संखेज्ज-वासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं। ३२–यदि संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है तो क्या पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज मनुष्यों को या अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है ? उत्तर—गौतम! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, अपर्याप्त को नहीं। विवेचन पर्याप्त एवं अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज, गर्भज मनुष्य दो प्रकार के होते हैं—(१) पर्याप्त (२) अपर्याप्त। पर्याप्त कर्मप्रकृति के उदय से मनुष्य स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करे वह पर्याप्त कहलाता है। __ अपर्याप्त कर्म के उदय से स्वयोग्य पर्याप्तियों को जो पूर्ण न कर सके उसे अपर्याप्त कहते जीव की शक्ति-विशेष की पूर्णता पर्याप्ति कहलाती है। पर्याप्तियाँ छः हैं। वे इस प्रकार हैं(१) आहारपर्याप्ति—जिस शक्ति से जीव आहार के योग्य बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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