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________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [४५ विवेचन गाथा में बताया गया है कि नैरयिक, देव और तीर्थंकर, इनको निश्चय ही अवधिज्ञान न होता है। दूसरी विशेषता इनमें यह है कि इन तीनों को जो अवधिज्ञान होता है, वह सर्वदिशाओं और विदिशाओं विषयक होता है। शेष मनुष्य व तिर्यंच ही देश से प्रत्यक्ष करते हैं। तात्पर्य यह है कि नारक, देव और तीर्थंकर अवधिज्ञान से बाहर नहीं होते, इसके दो अर्थ होते हैं। प्रथम यह कि इन्हें अवश्य ही जन्मसिद्ध अवधिज्ञान होता है। दूसरा अर्थ यह कि ये अपने अवधिज्ञान द्वारा प्रकाशित क्षेत्र के भीतर ही रहते हैं, क्योंकि इनका अवधिज्ञान सभी दिशा-विदिशाओं को प्रकाशित करता है। शेष मनुष्यों और तिर्यंचों के लिए यह नियम नहीं है। शेष मनुष्य और तिर्यंच अवधिज्ञान से कोई अबाह्य होते हैं और कोई बाह्य भी होते हैं, अर्थात् उन्हें दोनों प्रकार का ज्ञान हो सकता है। देव और नारकी आजीवन अवधिज्ञान से अबाह्य रहते हैं, किन्तु तीर्थंकर छद्मस्थकाल तक ही अवधिज्ञान से अबाह्य होते हैं। तीर्थंकर बनने वाली आत्मा यदि देवलोक से या लोकान्तिक देवलोकों में से च्यवकर आई है तो वह विपुल अवधिज्ञान लेकर आती है और यदि वह पहले, दूसरे एवं तीसरे नरक से आती है तो अवधिज्ञान उतना ही रहता है जितना तत्रस्थ नारकी में होता है, किन्तु वह अवधिज्ञान अप्रतिपाति होता है। इस प्रकार अवधिज्ञान का निरूपण सम्पन्न हुआ। मनःपर्यवज्ञान २८ से किं तं मणपज्जवनाणं ? मणपज्जवणाणे णं भंते! किं पणुस्साणं उपपन्जइ अमणुस्साणं? गोयमा! मणुस्साणं, णो अमणुस्साणं। २८-प्रश्न—भंते! मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप क्या है? यह ज्ञान मनुष्यों को उत्पन्न होता है या अनमुष्यों को ? (देव नारक और तिर्यंचों को ?)। भगवान् ने उत्तर दिया हे गौतम! मनःपर्यवज्ञान मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है, अमनुष्यों को नहीं। विवेचन—सूत्रकार अवधिज्ञान के पश्चात् अब मनःपर्यवज्ञान का अधिकारी कौन हो सकता है, इसका विवेचन प्रश्न और उत्तर के रूप में करते हैं। प्रश्न किया जा सकता है कि जिन नहीं किंतु जिन-सदृश गणधरों में प्रमुख गौतम स्वामी को यह शंका कैसे हो सकती है कि मन:पर्यवज्ञान किसको होता है ? उत्तर—यह है कि प्रश्न कई कारणों से किये जाते हैं। यथा—जिज्ञासा का समाधान करने के लिए, विवाद करने के लिए, किसी ज्ञानी की परीक्षा करने के लिए अथवा अपनी विद्वत्ता सिद्ध करने के लिए भी। किन्तु गौतम स्वामी के लिए इनमें से कोई भी कारण संभाव्य नहीं हो सकता था। वे चार ज्ञान के धारक, पूर्ण निरभिमान एवं विनीत थे। अतः उनके प्रश्न पूछने के निम्न कारण हो सकते हैं। जैसे-अपने अवगत विषय को स्पष्ट करने के लिए, अन्य लोगों की शंका के निवारण
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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