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[नन्दीसूत्र १८. भरहम्मि अद्धमासो जंबुद्दीवम्मि साहिओ मासो ।
वासं च मणुयलोए वासपुहुत्तं च रुयगम्मि ॥ १८—यदि क्षेत्र से सम्पूर्ण भरतक्षेत्र को देखे तो काल से अर्धमास परिमित भूत, भविष्यत् एवं वर्तमान, तीनों कालों को जाने। यदि क्षेत्र से जम्बूद्वीप पर्यन्त देखता है तो काल से एक मास से भी अधिक देखता है। यदि क्षेत्र से मनुष्यलोक परिमाण क्षेत्र देखे तो काल से एक वर्ष पर्यन्त भूत, भविष्य एवं वर्तमान काल देखता है। यदि क्षेत्र से रुचक क्षेत्र पर्यन्त देखता है तो काल से पृथक्त्व (दो से लेकर नौ वर्ष तक) भूत और भविष्यत् काल को जानता है।
१९. संखेजम्मि उ काले दीव-समुझ वि होंति संज्जा ।
___ कालम्मि असंखेज्जे दीव-समुद्दा उ भइयव्वा ॥ १९—अवधिज्ञानी यदि काल से संख्यात काल को जाने तो क्षेत्र से भी संख्यात द्वीप-समुद्र पर्यन्त जानता है और असंख्यात काल जानने पर क्षेत्र से द्वीपों एवं समुद्रों की भजना जाननी चाहिए अर्थात् संख्यात अथवा असंख्यात द्वीप-समुद्र जानता है।
२०. काले चउण्ह वुड्डी कालो भइयव्वु खेत्तवुड्ढीए।
वुड्डीए दव्व-पज्जव भइयव्वा खेत्त-काला उ॥ २०-काल की वृद्धि होने पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव चारों की अवश्य वृद्धि होती, है। क्षेत्र की वृद्धि होने पर काल की भजना है। अर्थात् काल की वृद्धि हो सकती है और नहीं भी हो सकती। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होने पर क्षेत्र और काल भजनीय होते हैं अर्थात् वृद्धि पाते भी हैं और नहीं भी पाते हैं।
२१. सुहुमो य होइ कालो तत्तो सुहुमयरयं हवइ खेत्तं ।
अंगुलसेढीमेत्ते ओसप्पिणिओ असंखेज्जा ॥
से तं वड्डमाणयं ओहिणाणं। २१–काल सूक्ष्म होता है किन्तु क्षेत्र उससे भी सूक्ष्म अर्थात् सूक्ष्मतर होता है, क्योंकि एक अंगुलमात्र श्रेणी रूप क्षेत्र में आकाश के प्रदेश अंसख्यात अवसर्पिणियों के समय जितने होते हैं। यह वर्द्धमानक अवधिज्ञान का वर्णन है।
विवेचन क्षेत्र और काल में कौन किससे सूक्ष्म है? सूत्रकार ने स्वयं ही इसका उत्तर देते हुए कहा है—काल सूक्ष्म है किन्तु वह क्षेत्र की अपेक्षा से स्थूल है। क्षेत्र काल की अपेक्षा से सूक्ष्म है क्योंकि प्रमाणांगुल बाहल्य-विष्कम्भ श्रेणी में आकाश प्रदेश इतने हैं कि यदि उन प्रदेशों का प्रतिसमय अपहरण किया जाये तो निर्लेप होने में असंख्यात अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल व्यतीत हो जाएं। क्षेत्र के एक-एक आकाशप्रदेश पर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अवस्थित हैं। द्रव्य की अपेक्षा भाव सूक्ष्म है, क्योंकि उन स्कन्धों में अनन्त परमाणु रहे हुए हैं और प्रत्येक परमाणु में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से अनन्त पर्यायें वर्तमान हैं। काल, क्षेत्र, द्रव्य और भाव ये क्रमशः