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________________ २४] [नन्दीसूत्र सुशिक्षित, आस्थावान्, आत्मान्वेषी आदि गुणों से सम्पन्न श्रोता हों वह विज्ञपरिषद् कहलाती है। विज्ञपरिषद् ही सर्वोत्तम परिषद् है। (२) जो श्रोता पशु-पक्षियों के अबोध बच्चों की भाँति सरलहृदय तथा मत-मतान्तरों की कलुषित भावनाओं से रहित होते हैं, उन्हें आसानी से सन्मार्गगामी, संयमी, विद्वान् एवं सद्गुणसम्पन्न बनाया जा सकता है, क्योंकि उनमें कुसंस्कार नहीं होते। ऐसे सरलहृदय श्रोताओं की परिषद् को अविज्ञपरिषद् कहते हैं। (३) जो अभिमानी, अविनीत, दुराग्रही और वस्तुत: मूढ हों, फिर भी अपने आपको पंडित समझते हों, लोगों से अपने पांडित्य की झूठी प्रशंसा सुनकर वायु से पूरित मशक की तरफ फूल उठते हों, ऐसे श्रोताओं के समूह को दुर्विदग्धा-परिषद् समझना चाहिये। उपर्युक्त परिषदों में विज्ञपरिषद् अनुयोग के लिए सर्वथा पात्र है। दूसरी भी पात्र है किन्तु तीसरी दुर्विदग्धा-परिषद् ज्ञान देने के लिए अयोग्य है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए शास्त्रकार ने श्रोताओं की परिषद् का पहले वर्णन किया 000
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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