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श्रुतज्ञान]
[२१३ है। पूर्वभव, देवत्वप्राप्ति, देवलोक की आयु, वहाँ से च्यवन, जन्म, राज्यश्री, दीक्षा, उग्रतप, कैवल्यप्राप्ति, तीर्थप्रवर्तन, शिष्यों, गणधरों, गणों, आर्याओं, प्रवर्तिनियों तथा चतुर्विध संघ का परिमाण, केवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, पूर्वधर, वादी, अनुत्तर विमानगति को प्राप्त, उत्तरवैक्रियधारी मुनि तथा कितने सिद्ध हुए, आदि का वर्णन किया गया है। मोक्ष-सुख की प्राप्ति और उसके साधन भी बताए हैं। उक्त विषयों को देखते हुए स्पष्ट है कि तीर्थंकरों के जीवनचरित्र मूल प्रथमानुयोग में वर्णित हैं।
१०८-से किं तं गंडिआणुओगे ?
गंडिआणुओगे—कुलगरगंडिआओ, तित्थयरगंडिआओ, चक्कवट्टिगंडिआओ, दसारगंडिआओ, बलदेवगंडिआओ, वासुदेवगंडिआओ, गणधरगंडिआओ, भद्दबाहुगंडिआओ, तवोकम्मगंडिआओ, हरिवंसगंडिआओ, उस्सप्पिणीगंडिआओ, ओसप्पिणीगंडिआओ, चित्तंत्तरगंडिआओ, अमर-नर-तिरिअ निरय गइगमण विविह–परियट्टणाणुओगेसु, एवमाइआओ गंडिआओ आघविन्जंति, पण्णविज्जति।
से तं गंडिआणुओगे, से त्तं अणुओगे। १०८-गण्डिकानुयोग किस प्रकार का है ?
गण्डिकानुयोग में कुलकरगण्डिका तीर्थंकरगण्डिका, चक्रवर्तीगण्डिका, दशारगंडिका, बलदेवगंडिका, वासुदेवगण्डिका, गणधरगण्डिका, भद्रबाहुगण्डिका, तपःकर्मगण्डिका, हरिवंशगण्डिका, उत्सर्पिणीगण्डिका, अवसर्पिणीगण्डिका, चित्रान्तरगण्डिका, देव, मनुष्य, तिर्यंच, नरकगति, इनमें गमन और विविध प्रकार से संसार में पर्यटन इत्यादि गण्डिकाएँ कही गई हैं। इस प्रकार प्रतिपादन की गई हैं। यह गण्डिकानुयोग है।
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में गण्डिकानुयोग का वर्णन है। गण्डिका शब्द प्रबन्ध या अधिकार के लिए दिया गया है। इसमें कुलकरों की जीवनचर्या, एक तीर्थंकर और उसके बाद दूसरे तीर्थंकर के मध्य-काल में होनेवाली सिद्धपरम्परा का वर्णन तथा चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, गणधर, हरिवंश, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी तथा चित्रान्तर यानी पहले व दूसरे तीर्थंकर के अन्तराल में होने वाले गद्दीधर राजाओं का इतिहास वर्णित है। साथ ही उपर्युक्त महापुरुषों के पूर्वभवों में देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक, इन चारों गतियों के जीवनचरित्र तथा वर्तमान और अनागत भवों का इतिहास भी है। संक्षेप में, जब तक उन्हें निर्वाण पद की प्राप्ति नहीं हुई, तब तक के सम्पूर्ण जीवन-वृत्तान्त गण्डिकानुयोग में वर्णन किये गए हैं। चित्रान्तरगण्डिका के विषय में वृत्तिकार ने लिखा है
___ "चित्तन्तरगण्डिआउति, चित्रा अनेकार्था अन्तरेऋषभाजिततीर्थंकरापान्तराले गण्डिकाः चित्रान्तरगण्डिकाः, एतदुक्तं भवति-ऋषभाजिततीर्थंकरान्तरे ऋषभवंशसमुद्भूतभूपतीनां शेषगतिगमनव्युदासेन शिवगतिगमनानुत्तरोपपातप्राप्तिप्रतिपादिका गण्डिका चित्रान्तरगण्डिका।"
___ गण्डिकानुयोग को गन्ने के उदाहरण से भली भांति समझा जा सकता है। जिस प्रकार गन्ने में गाँठे होने से उसका थोड़ा-थोड़ा हिस्सा सीमित रहता है, उसी प्रकार तीर्थंकरों के मध्य का समय भिन्न-भिन्न इतिहासों के लिए सीमित होता है।