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________________ २०४] [नन्दीसूत्र हो, वह दृष्टिवाद कहला सकता है। यद्यपि दृष्टिवाद का व्यवच्छेद सभी तीर्थंकरों के शासनकाल में होता रहता है, किन्तु बीच के आठ तीर्थंकरों के समय में कालिक श्रुत का भी व्यवच्छेद हो गया था। कालिकश्रुत के व्यवच्छेद होने से भाव-तीर्थ भी लुप्त हो गया। फिर भी श्रुतिपरम्परा से उसकी कुछ अंश में व्याख्या की जाती है। इसके विषय में वृत्तिकार ने लिखा है "सर्वमिदं प्रायो व्यवच्छिन्नं तथापि लेशतो यथागतसम्प्रदायं किञ्चित् व्याख्यायते।" अर्थात् सम्पूर्ण दृष्टिवाद का प्रायः व्यवच्छेद हो गया तथापि श्रुति-परम्परा से उसकी अंश मात्र व्याख्या की जाती है। सम्पूर्ण दृष्टिवाद पाँच भागों में विभक्त है—परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। क्रमानुसार सभी का वर्णन किया जायेगा। (१) परिकर्म ९७–से किं तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा (१) सिद्धसेणिआपरिकम्मे (२) मणुस्ससेणिआपरिकम्मे (३) पुटुसेणिआपरिकम्मे (४) ओगाढ सेणिआपरिकम्मे (५) उवसंपज्जणसेणिआपरिक म्मे (६) विप्पजहणसेणिआपरिकम्मे (७) चुआचुअसेणिआपरिकम्मे। ९७—परिकर्म कितने प्रकार का है? परिकर्म सात प्रकार का है, यथा (१) सिद्ध-श्रेणिकापरिकर्म (२) मनुष्य-श्रेणिकापरिकर्म (३) पुष्ठ-श्रेणिकापरिकर्म (४) अवगाढ-श्रेणिकापरिकर्म (५) उपसम्पादन-श्रेणिकापरिकर्म (६) विप्रजहत्-श्रेणिकापरिकर्म (७) च्युताच्युतश्रेणिका-परिकर्म। विवेचन—जिस प्रकार गणितशास्त्र में संकलना आदि सोलह परिकर्म के अध्ययन से सम्पूर्ण गणित को समझने की योग्यता प्राप्त हो जाती है, उसी प्रकार परिकर्म का अध्ययन करने से दृष्टिवाद के शेष सूत्रों को ग्रहण करने की योग्यता आती है और दृष्टिवाद के अन्तर्गत रहे सभी विषय सुगमतापूर्वक समझे जा सकते हैं। वह परिकर्म मूल और उत्तर भेदों सहित व्यवच्छिन्न हो चुका है। १. सिद्धश्रेणिका परिकर्म ९८ से किं तं सिद्धसेणिआ-परिकम्मे ? सिद्धसेणिआ-परिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा (१) माउगापयाइं (२) . एगट्टिअपयाई (३) अट्ठपयाई (४) पाढोआगासपयाई (५) केउभूअं (६) रासिबद्धं (७) एगगुणं (८) दुगुणं (९) तिगुणं (१०) केउभूअं (११) पडिग्गहो (१२) संसारपडिग्गहो (१३) नंदावत्तं (१४) सिद्धावत्तं।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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