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मतिज्ञान]
[१२१ और तम्बू में ऊपरी छिद्र के नीचे एक थाली में कोई पेय-पदार्थ डाल दिया। जब चन्द्र उस छेद के ठीक ऊपर आया तो उसका प्रतिबिम्ब थाली में भरे हुए पदार्थ पर पड़ने लगा। उसी समय चाणक्य ने उस स्त्री से कहा "बहन! लो इस थाली में चन्द्र है, इसे पी लो" क्षत्राणी प्रसन्न होकर उसे पीने लगी और ज्योंही उसने पेय-वस्तु समाप्त की चाणक्य ने रस्सी खींचकर उस छिद्र को बन्द कर दिया। स्त्री ने यही समझा कि मैंने 'चन्द्र' पी लिया है। चन्द्रपान की इच्छा पूर्ण होने से वह शीघ्र स्वस्थ हो गई तथा समय आने पर उसने चन्द्र के समान ही एक अत्यन्त तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। नाम उसका चन्द्रगुप्त रखा गया। चन्द्रगुप्त जब बड़ा हुआ तो उसने अपनी माता को 'चन्द्रपान' कराने वाले चाणक्य को अपना मन्त्री बना लिया तथा उसकी पारिणामिकी बुद्धि की सहायता से नन्द को मारकर पाटलिपुत्र पर अपना अधिकार कर लिया।
(१३) स्थूलिभद्र-जिस समय पाटलिपुत्र में राजा नन्द राज्य करता था, उसका मन्त्री शकटार नामक एक चतुर पुरुष था। उसके स्थूलिभद्र एवं श्रियक नाम के दो पुत्र थे तथा यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेणा, वेणा और रेणा नाम की सात पुत्रियाँ थी। सबकी स्मरणशक्ति बड़ी तीव्र थी। अन्तर यही था कि सबसे बड़ी पुत्री यक्षा एक बार जिस बात को सुन लेती उसे ज्यों की त्यों याद कर लेती। दूसरी यक्षदत्ता दो बार सुनकर और इसी प्रकार बाकी कन्याएँ क्रमशः तीन, चार, पाँच, छः और सात बार सुनकर किसी भी बात को याद करके सुना सकती थीं।
पाटलिपुत्र में ही वररुचि नामक एक ब्राह्मण भी रहता था। वह बड़ा विद्वान् था। प्रतिदिन एक सौ आठ श्लोकों की रचना करके राज-दरबार में राजा नन्द की स्तुति करता था। नन्द स्तुति सुनता और मन्त्री शकटार की ओर इस अभिप्राय से देखता था कि वह प्रशंसा करे तो उसके अनुसार पुरस्कार-स्वरूप कुछ दिया जा सके। किन्तु शकटार मौन रहता अतः राजा उसे कुछ नहीं देता था। वररुचि प्रतिदिन खाली हाथ लौटता था। घर पर उसकी पत्नी उससे झगड़ा किया करती थी कि वह कुछ कमाकर नहीं लाता तो घर का खर्च कैसे चले? प्रतिदिन पत्नी के उपालम्भ सुन-सुनकर वररुचि बहुत खिन्न हुआ और एक दिन शकटार के घर गया। शकटार की पत्नी ने उसके आने का कारण पूछा तो वररुचि ने सारा हाल कह सुनाया और कहा "मैं रोज नवीन एक सौ आठ श्लोक बनाकर राजा की स्तुति करता हूँ किन्तु मन्त्री के मौन रहने से राजा मुझे कुछ नहीं देते और घर में पत्नी कलह किया करती है। कहती है—कुछ लाते तो हो नहीं फिर दिन भर कलम क्यों घिसते हो?"
शकटार की पत्नी बुद्धिमती और दयालु थी। उसने सायंकाल शकटार से कहा-"स्वामी! वररुचि प्रतिदिन एक सौ आठ नए श्लोकों के द्वारा राजा की स्तुति करता है। क्या वे श्लोक आपको अच्छे नहीं लगते? अच्छे लगते हों, तो आप पंडित की सराहना क्यों नहीं करते?" उत्तर में मन्त्री ने कहा- "वह मिथ्यात्वी है इसलिये।" पत्नी ने पुनः विनयपूर्वक आग्रह करते हुए कहा "अगर
प्रशंसा में कह गए दो बोल उस गरीब का भला करते हैं तो कहने में हानि ही क्या है?" शकटार चुप हो गया।
अगले दिन जब वह दरबार में गया तो वररुचि ने अपने नये श्लोकों से राजा की स्तुति की।