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________________ ११६] [ नन्दीसूत्र भगवान् महावीर की आज्ञा लेकर अपनी शिष्यमंडली सहित मुनि नन्दिषेण ने राजगृह से अन्यत्र विहार कर दिया। बहुत काल तक ग्रामानुग्राम विचरण करने पर एक बार मुनि नन्दिषेण को ज्ञात हुआ कि उनका एक शिष्य संयम के प्रति अरुचि रखने लगा है तथा पुनः सांसारिक सुख भोगने की इच्छा रखता है। कुछ विचार कर नन्दिषेण ने शिष्य - समुदाय सहित पुनः राजगृह की ओर प्रस्थान किया । अपने पुत्र मुनि नन्दिषेण के आगमन का समाचार सुनकर राजा श्रेणिक को अपार हर्ष हुआ । वह अपने अन्तःपुर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ नगर के बाहर, जहाँ मुनिराज ठहरे थे, दर्शनार्थ आया। सभी संतों ने राजा श्रेणिक को, उनकी रानियों को तथा अपने गुरु नन्दिषेण की अनुपम रूपवती पत्नियों को देखा। उन्हें देखकर मुनि-वृत्ति त्यागने के इच्छुक, विचलित मन वाले उस साधु ने सोचा―" अरे ! मेरे गुरु ने तो अप्सराओं को भी मात करने वाली इन रूपवती स्त्रियों को त्याग कर मुनि-धर्म ग्रहण किया है तथा मन, वचन, कर्म से सम्यक्तया इसका पालन कर रहे हैं, और मैं वमन किये हुए विषय-भोगों का पुनः सेवन करना चाहता हूँ! धिक्कार है मुझे ! मुझे इस प्रकार विचलित होने का प्रायश्चित्त करना चाहिए ।" ऐसे विचार आने पर वह मुनि पुनः संयम में दृढ हो गया तथा आत्म-कल्याण में और अधिक तन्मयता से प्रवृत्त हुआ । यह सब मुनि नन्दिषेण की पारिणामिकी बुद्धि के कारण हो सका । (७) धनदत्त - धनदत्त का उदाहरण श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र के अठारहवें अध्ययन में विस्तारपूर्वक दिया गया है, अतः उसमें से जानना चाहिए । — (८) श्रावक- - एक व्यक्ति ने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये। 'स्वदारसंतोष' भी उनमें से एक था। बहुत समय तक वह अपने व्रतों का पालन करता रहा किन्तु कर्म- संयोग से एक बार उसने अपनी पत्नी की सखी को देख लिया और आसक्त होकर उसे पाने की इच्छा करने लगा। अपनी इस इच्छा को लज्जा के कारण वह व्यक्त नहीं करता था, किन्तु मन ही मन दुखी रहने के कारण दुर्बल होता चला जा रहा था । यह देखकर उसकी पत्नी ने एक दिन आग्रह करके उससे कारण पूछा। श्रावक की पत्नी बड़ी गुण सम्पन्न श्राविका थी । उसने पति का तिरस्कार नहीं किया अपितु विचार करने लगी―" अगर मेरे पति का इन्हीं कुविचारों के साथ निधन होगा तो उन्हें दुर्गति प्राप्त होगी। अतः ऐसा करना चाहिये कि इनके कलुषित विचार नष्ट हो जाएँ और व्रत भंग न हो। " बहुत सोच विचार कर उसने एक उपाय खोज निकाला। वह एक दिन पति से बोली "स्वामिन्! मैनें अपनी सखी से बात कर ली है । वह आज रात्रि को आपके पास आयेगी, किन्तु आयेगी अँधेरे में। वह कुलीन घर की है अतः उजाले में आने में लज्जा अनुभव करती है ।" पति से यह कहकर वह अपनी सखी के पास गई और उससे वही वस्त्राभूषण माँग लाई, जिन्हें पहने हुए उसके पति ने उसे देखा था। रात्रि को उसने उन्हें ही धारण किया और चुपचाप अपने पति के पास चली गई। किन्तु प्रातः काल होने पर श्रावक को घोर पश्चात्ताप हुआ। वह अपनी पत्नी से कहने लगा "मैंने
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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