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[नन्दीसूत्र न्यायकर्ता बहुत चक्कर में पड़ गया कि बच्चे की असली माता की पहचान कैसे करें! किन्तु तत्काल ही उसकी औत्पत्तिकी बुद्धि ने साथ दिया और उसने कर्मचारियों को आज्ञा दी— _ 'पहले इन दोनों में व्यापारियों की सम्पत्ति बांट दो और उसके बाद इस लड़के को आरी से काटकर आधा-आधा दोनों को दे दो।' यह आदेश पाकर एक स्त्री तो मौन रही, किन्तु दूसरी बाणविद्ध हरिणी की तरह छटपटारती और बिलखती हुई बोल उठी—'नहीं! नहीं!! यह पुत्र मेरा नहीं है, इसका ही है। इसे ही सौंप दिया जाये। मुझे धन-सम्पति भी नहीं चाहिये। वह भी इसे ही दे दें। मैं तो दरिद्र अवस्था में रहकर दूर से ही बेटे को देखकर सन्तुष्ट रह लूँगी।'
न्यायाधीश ने उस स्त्री के दुःख को देखकर जान लिया कि यही बच्चे की असली माता है। इसलिये यह धन-सम्पत्ति आदि किसी भी कीमत पर अपने पुत्र की मृत्यु सहन नहीं कर सकती। परिणाम-स्वरूप बच्चा और साथ व्यापारी की सब सम्पत्ति भी असली माता को सौंप दी गई। बन्ध्या. स्त्री को उसकी धूर्तता के कारण धक्के मारकर भगा दिया गया। यह न्यायाधीश की औत्पत्तिकी बुद्धि
(१८) मधु-सित्थ (मधु छत्र) एक जुलाहे की पत्नी का आचरण ठीक नहीं था। एक बार जुलाहा किसी अन्य ग्राम को गया तो उसने किसी दुराचारी पुरुष के साथ गलत सम्बन्ध बना लिया। वहाँ उसने जाल-वृक्षों के मध्य एक मधु छत्ता देखा किन्तु उसकी ओर विशेष ध्यान दिये बिना वह घर लौट आई। ग्राम से लौटकर एक बार संयोगवश जुलाहा मधु खरीदने के लिए बाजार जाने को तैयार हआ। यह देखकर स्त्री ने उसे रोका और कहा-'तम मध खरीदते क्यों हो? मैं मधु का एक विशाल छत्ता ही तुम्हें बताए देती हूँ।' ऐसा कहकर वह जुलाहे को जाल वृक्षों के पास ले गई पर वहाँ छत्ता दिखाई न देने पर उस स्थान पर पहुँची जहाँ घने वृक्ष थे और पिछले दिन उसने अनाचार का सेवन किया था। वहीं पर छत्ता था जो उसने पति को दिखा दिया।
जुलाहे ने छत्ता देखा पर साथ ही उस स्थान का निरीक्षण भी कर लिया। अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि से वह समझ गया कि इस स्थान पर उसकी स्त्री निरर्थक नहीं आ सकती। निश्चय ही यहाँ आकर यह दुराचार-सेवन करती है।
(१९) मुद्रिका 'किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। नगर में प्रसिद्ध था कि वह बड़ा सत्यवादी है और कोई अपनी किसी भी प्रकार की धरोहर उसके पास रख जाता है तो, चाहे कितने भी समय के बाद मांगे, वह ब्राह्मण पुरोहित तत्काल लौटा देता है। यह सुनकर एक द्रमक—गरीब व्यक्ति ने अपनी हजार मोहरों की थैली उस पुरोहित के पास धरोहर के रूप में रख दी और स्वयं देशान्तर में चला गया। बहुत समय पश्चात् जब वह लौटा तो पुरोहित से अपनी थैली मांगने आया। केन्तु ब्राह्मण ने कहा
"तू कौन है? कहाँ से आया है? कैसी तेरी धरोहर!" बेचारा गरीब व्यक्ति ऐसा टका-सा जवाब पाकर पागल-सा हो गया और 'मेरी हजार मोहरों